निकलो जो खोजने नहीं मिलता है आदमी
यूँ दर बदर फिरते कई हजार आदमी
कितना सुखी है जानवर उसको पता नहीं
रोटी की दौड़ में लगा लाचार आदमी
पैसा कमा लिया बहुत सेहत के दाम पर
पैसा बहा रहा है अब बीमार आदमी
आराम से जीने के सब साधन जुटा लिए
जीने को वक़्त का है तलबगार आदमी
कुत्ते की वफादारी है काबिल मिसाल के
कुत्ता है पर नहीं है वफादार आदमी
अपना शिकार मार कर खाता है जानवर
खाता है रोटी छीन कर 'खुद्दार' आदमी
मंडी में सारे माल के कुछ दाम है मगर
बेदाम के खड़ा सरे बाजार आदमी
अपनी बनाई सभ्यता की भंवर में फंसा
मरता है झूठी शान की मझदार आदमी
दुनिया की भीड़ भाड़ में चेहरे अलग अलग
संसार तो नाटक है , बस किरदार आदमी
सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंआईये पढें ... अमृत वाणी।
जवाब देंहटाएंaadmi milta kahan hai sir aaj kal...bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंBeautiful and true portrayal of today’s selfish ‘MAN’.
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