मुंबई जुलाई २६, २००५
जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात जानलेवा थी वो वर्षा बुरे हालात की रात
दफ्तरों से तो निकलना हुआ उस दिन सबका घर नहीं पहुंचा कोई चाहे हो निकला कब का खड़े पानी में सभी लोगों की इक जमात की रात
डूबते देखे वो रस्तों पे गाड़ियों के काफिले मरते देखे सड़क पे इन्सां जैसे हो बुलबुले क़यामत का दिन है - ऐसे ही खयालात की रात
लोग मेहमान थे उस रात किसी अनजाने के ऐसा लगता था की सब थे जाने पहचाने से जात मजहब से अलग हो रही वो मुलाकात की रात
था बुरा सब कुछ मगर कुछ हुआ अच्छा भी था था सुखी जो भी वो उसदिन हुआ सच्चा भी था एक दूजे के लिए दर्द और जज्बात की रात |
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