Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 17 जुलाई 2013

खुदा खुद तेरे अन्दर है










पहाड़ों में उसे ढूंढें
मजारों में उसे ढूंढें
जो दिल के पास हो रहता
नजारों  में उसे ढूंढें

कोई काबा को जाता है
कोई गंगा नहाता है
कोई खतरों से लड़ लड़ के
यूँ बद्रीनाथ जाता है

मदीना और मक्का हो
नमाजी  कितना पक्का हो
खुदा को ढूंढता रहता
हमेशा  हक्का बक्का हो

कोई अरदास करता है
कोई उपवास करता है
मगर साहब नहीं मिलता
ग्रन्थ का पाठ  करता है

अगर अल्लाह वहां होते
अगर ईश्वर  वहां होते
न मरते लोग हज जाकर
पहाड़ों में नहीं खोते

उत्तराखंड खंडित है
यहाँ हर भक्त दण्डित है
ये पूजा की  सभी जगहें
मात्र   मानव से मंडित है

खुदा खुद तेरे अन्दर है
तेरा मन ईश  मंदर है
सफाई कर ले अन्दर की
 तभी जीवन ये सुन्दर है