उड़ चला है आज मन पतंग की तरह
बचपन की भोली उमंग की तरह
ज्ञान ध्यान ओहदों को छोड़ किसी दिन
मस्त होके गाओ मलंग की तरह
मर मर के जीने की चाह छोड़ दो
और जियो जीने के ढंग की तरह
जीवन को दर्शन का लेख मत कहो
जीवन है हास्य भरे व्यंग की तरह
खेलो गुलाल फाग साल में इक दिन
रंगों में मिल जाओ रंग की तरह
शाम को तनाव का चश्मा उतार कर
मेज थपथपाओ मृदंग की तरह
waah sahi kaha khul ke jiyo...aur bachpan ko na marne do...saarthak kavita...
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