Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

बस ख्वामख्वाह

 बस ख्वामख्वाह      



जिंदगी जिए जा रहे , बस ख्वामख्वाह 

सांस भी लिए जा रहे , बस ख्वामख्वाह


खा लिए , फिर सो लिए,  फिर उठ लिए मगर 

खाने की फ़िक्र ही में रहे , बस ख्वामख्वाह


हर रोज बुढ़ापा हमारे आता है नजदीक 

जीने को वक़्त खोज रहे , बस ख्वामख्वाह


रिश्ते बने , कुछ टूट गए , छूट गए कुछ 

रिश्तों के लिए मर रहें हैं , बस ख्वामख्वाह


पैसे थे कम , थोड़े थे ग़म , फिर खूब कमाए 

पैसे भी और  ग़म भी हमने , बस ख्वामख्वाह

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

प्रार्थना

क्या अजीब है जिंदगी ?

हम क्या चाहते हैं हम खुद नहीं जानते

हमारी इच्छाएँ

हमारी कामनाएं सीमाहीन होती है

हम स्वस्थ रहने की कामना करते हैं

भगवान्  से प्रार्थना करते हैं !

 

लेकिन परिस्थितियां बदल देती है हमारी सोच ,

हम ऐसी कामना करने लगते हैं

जो शायद किसी दुश्मन के लिए भी न करें

 

देखो न ,

पिछले दिनों मेरे प्रियतम व्यक्ति को कष्ट हुआ

डॉक्टर ने जांचा और कहा

बायोप्सी की रपट की प्रतीक्षा करो

मैंने जिज्ञासा की -

क्या सम्भावना है ?

उसने कहा - दो !

तकदीर अच्छी है तो टीबी  ; और बुरी है तो कैंसर  !

और हमारी प्रार्थना बदल गयी -

हे भगवन - टीबी ही देना !

भगवान ने सुनी !

 

और अब !

फिर एक दोराहा

डॉक्टर कहता है कल एंजियोग्राफी करेगा

सम्भावना हैं दो -

बीमारी कम निकली तो स्टेंट लगेगा

ज्यादा निकली तो फिर ह्रदय का बाई पास !

हस्पताल के बिस्तर पर बैठा सोच रहा हूँ -

क्या प्रार्थना करूँ !

फिर सोचा की मेरे लिए सभी तो प्रार्थना कर रहें हैं

की कोई बीमारी ही न निकले

मैं क्यों किसी भी बीमारी की प्रार्थना करूँ !

 

हे भगवान ,

तुम्हे मेरे कर्म फल के रूप में जो  सही लगे

वैसा ही फल देना।

 

बस मन शांत हो गया

मोहे चिन्ता क्या नैया की

जब पतवार खिवैया की !

 

January 5, 2020

Room No. 711, Breach Candy Hospital, Mumbai