Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

मन की भाषा

शब्दों  की  भाषा से बढ़कर एक भाषा होती है
वह भाषा मन के भावों की परिभाषा होती है

हर शब्द नहीं बोला, समझा , समझाया जाता है
इक शब्द उतर कर आँखों में सब कुछ कह जाता है

है नहीं जरूरत मन की भाषा को तो वैया-करण की
है नहीं जरूरत शब्दकोष के साधन और शरण की

सुख की भाषा, दुःख की भाषा, भाषा क्रोधित भावों की
मौन प्रेम की अभिव्यक्ति , आंसू - आहत घावों की

यदि शब्द नहीं होते जीवन में शायद अच्छा होता
अपशब्दों की भाषा से बचता मानव बच्चा होता

4 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की भाषा से बढ़कर एक भाषा होती है
    वह भाषा मन के भावों की परिभाषा होती है

    हर शब्द नहीं बोला, समझा , समझाया जाता है
    इक शब्द उतर कर आँखों में सब कुछ कह जाता है

    Waah! Waah kitni sargarbhit baat kah di aapne thode se shabdon me. mananiy aur vicharniy post ....Thanks for meaningful post.

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  2. sabdo ki bhasha me ham bade pyar se kahte hain - u r superb.........aur mann kahta hai, arre bebekuf hai:P..........he he he he:D
    hota hai na aisa..........!!

    waise superb kavita!!

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  3. बहुत ही सुन्दर कविता , वाकई मन को छूती हुई सी निकलती है यही तो आपकी बाजीगरी है शब्दों के जादूगर हैं आप ---मन को किसी भाषा की जरुरत नहीं लेकिन भाव को व्यक्त करने में शब्द सहायक तो हैं ये शब्द नहीं होते तो ये टिप्पणी कैसे करते है ना

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  4. धन्यवाद तिवारीजी ,मुकेशभाई और मनवा वाली ममताजी का . आपकी प्रतिक्रिया होसला बढाती है .

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