Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 26 नवंबर 2018

पागल कुत्ते






कुछ मौत के व्यापारी

खरीदने आये थे मौत

समुद्र की राह से



खरीदनी थी मौत ,

तबाही ,हाहाकार

चीत्कार, आहें



कीमत भी थी मौत

खुद अपनी

पागल कुत्तों जैसी



दरअसल

वो आदमी नहीं थे

वो थे हथियार



एक ऐसे जूनून के

जो बांटता है

सिर्फ नफरत



नफरत

कभी मजहब के नाम पर

कभी मुल्क के नाम पर



वो अब भी नहीं रुके

तैयार कर रहें और हथियार

और मौत के सौदागर



ये कह कर की

पहले वाले अपनी शहादत का

इनाम पा रहे हैं - जन्नत में