Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

आम आदमी का नया साल

नया साल खुशहाली लाये 
नल से  पानी कभी न जाए  
सुबह सवेरे रोज नहाएं
ताजा हो दफ्तर को जाएँ
बस की लाइन भी छोटी हो
पेंडिंग फ़ाइल न मोटी हो
बॉस प्यार से ही बतियाएँ
और जरा तनख्वाह बढ़ाएं
और शाम को घर जब आयें
घर में पंखा चलता पाएं
गर्मी में बिजली न जाए
बिजली का बिल पर घट  जाए
राजनीति में भी तबदीली
'आप ' ने जैसे छीनी  दिल्ली
वैसे ही सत्ता की  गोदी
में आ जाएँ पी एम मोदी
बलात्कार का नाम न होवे
भ्रष्टाचार से काम न होवे
नए साल में जो हो भैया
कांग्रेस का नाम न होवे 

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

देश का इतिहास

बहुत से लोगों ने देश का इतिहास लिखा है
सब ने कुछ न कुछ ख़ास लिखा है
इतिहास लिखा था महात्मा गांधी ने
बिना हथियार के लड़ी आंधी ने

अनाथों को दिया माँ का सा आभास
लिखा था मदर टेरेसा ने इतिहास
रविंद्रनाथ टैगोर ने लिखी गीतांजलि
इतिहास की  किताब की कड़ी बन मिली

आवाज की  दुनिया की मलिका  ऐ खास
लिखा लता मंगेशकर ने इस देश का  इतिहास
व्यक्तित्व और अभिनय से दिलों पर किया राज
इतिहास लिख रहें है बच्चन अमिताभ

इसी  श्रंखला में इतिहास लिख रहें हैं
दुनिया के लोगों के दिल में बस रहें हैं
लिख सकता है इतिहास कोई बल्ला घुमा कर
पूरा करेंगे इतिहास आज सचिन तेंदुलकर

शनिवार, 2 नवंबर 2013

एक दिया उनको भी दो

( मेरे दादाजी स्वर्गीय लालमन जी की एक रचना )

जिनके घर उजियार घनेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर में अधिक अँधेरा - एक दिया उनको भी दो

होली दीवाली क्या जाने वो - अन्न न एक समय जिनको
एकादशी लगाती फेरा - एक दिया उनको भी दो

जिनके घर का आसमान छत - और धरती ही आँगन है
है केवल चंदा का उजेरा - एक दिया उनको भी दो

महलों की तो दूर जिन्हे - झोपड़ियों की भी आस नहीं
फुटपाथों पर जिनका डेरा - एक दिया उनको भी दो

कहे रात की क्या दिन में भी - भटक रहे अँधेरे में
मानो कहा आज तुम मेरा - एक दिया उनको भी दो

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

बे-चारा लालू










विश्वास नहीं  होता
ऐसा भी होता है
भारत का नेता भी
अब अन्दर होता है

कितना भी धूरत हो
कितना भी हो चालू
चाहे मिश्रा  जग्गू
चाहे यादव लालू

अपराध कहाँ था वह
बस खाया था चारा
चोरी गौ माता से
लो फंस गया बेचारा

चुपचाप सह गयी वो
भोली भाली  गैय्या
चोरी करने वाला
ग्वाला ही था भैया

दिन उलटे पड़  गए तब
लालू चुनाव हारा
सरकारी चमचा बन
फिरता मारा  मारा

फिर कांग्रेस ने भी
है झाड लिया पल्लू
लालूजी से अब
वो बन गया है लल्लू

सर्कार सहारे तो
ये  देश बेचारा है
न्यायालय ही अब तो
बस एक सहारा है    

बुधवार, 28 अगस्त 2013

कहाँ मुंह दिखा पायेगा ?


आशाराम बापू !
बहुत खूब नाम रखा तूने !
आशा - यानि भविष्य की उम्मीद
राम - यानि मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बापू - माँ  शब्द के बाद वात्सल्य की पराकाष्ठा !

तीनों नामों को बदनाम किया
गाय की खाल में भेड़िये  का रूप ?
बहुत व्याख्यान दिए तूने -
ईश्वर  पर , भक्ति पर
अंतर की शक्ति पर
परिवार के प्यार  पर
मानव के व्यवहार पर

भविष्य की प्रतीक वो बच्ची आई थी तेरे द्वार
पाने को तेरा आशीर्वाद , तेरा दुलार
तूने क्या दिया  उसे
वहशीपन , दरिंदगी !

जिंदगी भर राम के नाम पर
रोटियां सेकी तुमने
क्या क्षण भर को भी  उस राम का भय नहीं लगा
जब उतारे तुमने उस मासूम के कपडे

बापू - कहाना चाहते थे न तुम अपने आप को ?
क्या ऐसे होते हैं बापू ?
तेरी अंधश्रद्धा में फंसे उस परिवार को
बना लिया निवाला अपने चर्म सुख का

तू तो बुरा निकला एक वेश्या से भी
क्योंकि एक वेश्या ढोंग नहीं करती वो होने का
जो वो है नहीं
और न ही वो न होने का
जो वो है

कहाँ मुंह दिखा पायेगा ?
न इस लोक में
न उस लोक में

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

रूपया कहाँ गिर रहा है

कौन कहता है -
रूपया गिर रहा है
गिर तो रहा है आदमी
गरीबी की रेखा से नीचे
ऊपर जाती है कीमतें
नीचे आती है ये रेखा !

रूपया कहाँ गिर रहा है
गिर तो रही है साख इस देश की
सिरमौर बनने  का ख्वाब देखते देखते
सर  उठाने लायक भी नहीं रहे


रूपया नहीं गिर रहा मेरे भाई
गिर रही है इस देश की राजनीति
स्कूल में जहर खा कर मरे  बच्चों पर राजनीति
उत्तराँचल की त्रासदी पर राजनीति
बिहार की रेल से पिसे लोगों पर राजनीति
बलात्कारों पर राजनीति
हत्यारों पर राजनीति
चीत्कारों पर राजनीति
हाहाकारों पर राजनीति

गिर रहा है मनोबल देश का
गिर रहा स्वाभिमान देश का
पाकिस्तान से पडोसी धमकाते हैं
चीन से सीमा पर गुर्राते हैं

सब कुछ गिर रहा है पर वो क्यों नहीं गिरता
क्यों नहीं गिरता - जिसके कारण सब कुछ गिरता
रही नहीं इस देश को दरकार जिसकी
वो गिरती क्यों नहीं सर्कार इसकी

बुधवार, 17 जुलाई 2013

खुदा खुद तेरे अन्दर है










पहाड़ों में उसे ढूंढें
मजारों में उसे ढूंढें
जो दिल के पास हो रहता
नजारों  में उसे ढूंढें

कोई काबा को जाता है
कोई गंगा नहाता है
कोई खतरों से लड़ लड़ के
यूँ बद्रीनाथ जाता है

मदीना और मक्का हो
नमाजी  कितना पक्का हो
खुदा को ढूंढता रहता
हमेशा  हक्का बक्का हो

कोई अरदास करता है
कोई उपवास करता है
मगर साहब नहीं मिलता
ग्रन्थ का पाठ  करता है

अगर अल्लाह वहां होते
अगर ईश्वर  वहां होते
न मरते लोग हज जाकर
पहाड़ों में नहीं खोते

उत्तराखंड खंडित है
यहाँ हर भक्त दण्डित है
ये पूजा की  सभी जगहें
मात्र   मानव से मंडित है

खुदा खुद तेरे अन्दर है
तेरा मन ईश  मंदर है
सफाई कर ले अन्दर की
 तभी जीवन ये सुन्दर है




मंगलवार, 25 जून 2013

विभीषिका और राजनीति

पृकृति का तांडव पूरे जोर पर है
विनाश अगले छोर पर है
खंड  खंड हो रहा उत्तराखंड
इश्वर दे रहा न जाने कौन सा दंड
हजारों लोग - भक्त उपासक
फंसे बाढ़ में विनाशक
पूरे देश में हाहाकार है
कितने ही घरों में चीत्कार है
सेना के जवान प्राणों की बाजी लगा कर
बचा रहे सबको खुद को फंसा कर
देश कर रहा प्रार्थना हाथ जोड़े
भाग रहें समय के घोड़े

ऐसे  में राजनीति की क्या दरकार है 
कितनी असम्वेदनशील ये सर्कार है 
कितनी डरी  हुई- मोदी नाम के व्यक्ति से
उस की जांबाजी से उसकी शक्ति से 
उसकी यात्रा नहीं चाहिए
उसकी सहायता नहीं चाहिए 
उसके हेलिकोप्टर नहीं चाहिए 
उसका कुछ भी नहीं चाहिए 
लेकिन समझती नहीं है एक बात 
कैसे बदलते हैं हालात 
जितनी बार उसको ना  बोलोगे 
उतनी बार उसका नाम तो लोगे 
जितना उसको रोकोगे 
जितना उसको टोकोगे 
उतना वो आगे बढेगा 
उतना वो ऊपर चढ़ेगा



 

बुधवार, 29 मई 2013

क्यों बोलते हैं लोग ?

क्यों बोलते हैं  लोग ?
लोगों को अपनी मष्तिष्क तुला पर क्यों तौलते हैं लोग ?
क्यों बोलते हैं लोग ?

देश में एक बलात्कार हुआ
एक बहन के प्राण गए
पूरे देश में चीत्कार हुआ

मुद्दा बना - महिलाओं की सुरक्षा
पुलिस की लापरवाही
सर्कार की अकर्मण्यता
और जनता का रूखापन

ऐसे में देश का हर छोटा बड़ा आदमी
कुछ न कुछ बोलने लगा
बेवजह अपना मुंह खोलने लगा
छोटे आदमी की तो कौन सुनता है
मिडिया - लेकिन हर बड़े आदमी को चुनता है
स्टूडियो में खिंचाई के लिए
अपने कहे की सफाई के लिए
गलत व्याख्या हुई - इस दुहाई के लिए
बिना आंसुओं वाली रुलाई के लिए

कौन जानता था महामहिम प्रणव मुखर्जी  के सपूत को
ख्वामख्वाह दिए गए सन्देश के दूत को
कह दिया महिलाएं प्रदर्शन कम
और 'प्रदर्शन' अधिक कर रही है
बस इतना कहना था की
आ गए जूनियर मुखर्जी साहब प्रकाश में
टी वी के अंतहीन आकाश  में
माफ़ी मांगे तो मरे , न मांगे तो मरे
बेचारे राष्ट्रपति जी इसमें करे तो क्या करे


राजनीति और क्रिकेट

राजनीति और क्रिकेट
दोनों में कितनी समानताएं हैं
दोनों ही खेल हैं
जो खिलाडी खेलते हैं
और जनता देखती है

दोनों में ही भ्रष्टाचार है
भाई भतीजावाद ही नहीं
जमाइवाद भी है

दोनों में ही
भीड़ जुटना  लोकप्रियता का माप है
दोनों का ही आँखों देखा हाल -
साल भर प्रसारित होता है

दोनों में ही सिनिअर और जूनियर होते हैं
दोनों में ही विरोधी पक्ष अपील करता रहता है
दोनों ही देश के लिए समर्पित होते हैं
लेकिन मौका मिलते ही  देश को लूटते हैं
दोनों में ही चुनाव में घोटाला  है
दोनों में ही विदेशियों का बोलबाला है

दोनों में ही कई खिलाडी अन्दर हैं
दोनों में ही अध्यक्ष इस्तीफ़ा देने में विश्वास  नहीं करते
और दोनों के ही मुखिया
मिडिया के सामने मुह नहीं खोलते हैं

पता नहीं कि क्रिकेट में राजनीति है
या फिर राजनीति में क्रिकेट है

शुक्रवार, 24 मई 2013

कोई और बात

कभी मन में आता है
आज कुछ लिखूं
लिखने बैठता हूँ
तो मस्तिष्क खाली सा हो जाता है
घंटों बैठा रहता हूँ
इस निर्जीव से की-बोर्ड पर
जो लिखना चाहता हूँ
वो सच्चाई लिखने की हिम्मत नहीं
बाकी कुछ भी लिखा तो
बेमानी होगा
घटनाओं  को याद करना
जैसे कि  उन पलों को फिर से जीना
हिम्मत नहीं होती
झेल जाना नियति होती है
लेकिन जान बूझ कर दुबारा झेलना दुस्साहस
कितनी खौफनाक होती है सच्चाई
शायद  इसी लिए हर आदमी
डरता है मौत की बात करने से
ये जानते हुए भी कि
मृत्यु तो निश्चित है
नहीं है लिखने को कुछ
फिर लिखेंगे
किसी और दिन
कोई और बात


गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

जीवन फिर महक उठेगा यह


माना  मुसीबतें  आई हैं
माना कि बदली छाई है
कुछ क्षण को अँधेरा भी है
दुखों ने यूँ घेरा भी है

आखिर ये रजनी जाएगी
इक नया सवेरा लाएगी
ये बदली भी खो जायेगी
अँधेरे को धो जायेगी

नव आशाएं फिर जागेंगी
और सब मुसीबतें भागेंगी
जीवन फिर महक उठेगा यह
कलरव सा चहक उठेगा यह  

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

हम और वो

हम कहते हैं
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में
उन्होंने कहा माँ साल में एक दिन तुम्हारे लिए
मदर्स डे

हम कहते हैं
पितृ देवो भव
उन्होंने पिता की सीमा भी बाँध दी
फादर्स डे

हम कहते हैं
बलिहारी गुरु आपनो
उन्होंने गुरु के हिस्से में दिया
टीचर्स डे

हम कहते हैं
सात जनम का साथ
उन्होंने प्यार के लिए मुकर्रर किया
वैलेंटाइन डे

शनिवार, 26 जनवरी 2013

अहसास क्यों नहीं है ?

गणतंत्र दिवस का दिन कोई खास क्यों नहीं है
हम क्या हैं - इस बात का अहसास क्यों नहीं है

बलात्कारी देश की इज्जत को लूटते
रक्षक समय पे खड़ा  आस पास क्यों नहीं हैं

सीमा से लौटते हैं तन बिन  सर  जवानों के
सरहद पे दुश्मनों की कोई लाश क्यों नहीं है

आतंक वादी खून की होली हैं खेलते
इस देश की सर्कार पर उदास क्यों नहीं है

गृह मंत्री कहता विपक्ष आतंकवाद  की जड़ है
बंद करता उसकी कोई ये बकवास क्यों नहीं है