Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 5 मई 2021

रात है कहर कहर




जागते पहर पहर 

रात है कहर कहर 

क्यूँ न नज़र आ रही 

इक नयी सहर सहर !


सुख बने सपन सभी 

दुःख भरे नयन सभी 

जिंदगी न जाने क्यों 

है गयी ठहर ठहर  !


कंठ नीले पड़  गए 

होंठ जैसे जड़ गए 

अमृतों की चाह  में 

पी रहे जहर जहर !


ये सभी  चमक  दमक 

सिंधु में भरा नमक 

दुःख और दर्द की 

उठ रही लहर लहर !

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

कोरोना-कहर-२

 



 

इक दौर वो भी गुजर गया ,

इक दौर ये भी जायेगा

न वो टिक सका , न वो रुक सका

अब ये भी न टिक पायेगा !

 

तब हम भी कुछ नादान थे

कुछ ये भी था  अनजाना  सा

अब हम भी हैं कुछ होशियार

कुछ ये भी है पहचाना सा !

 

जीवन बड़ा अनमोल है

इसको जतन से संभालिये

जीवन रहा तो करेंगे सब

बाहर कदम न निकालिये !