Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 5 जून 2010

वक़्त

हम वक़्त से लड़ते रहे हर वक़्त बेवजह
पर वक़्त तो चलता रहा हर वक़्त बेवजह

हम बांध पाए कब समय का एक भी लम्हा
बांधी कलाई पर घडी हर वक़्त बेवजह

हम हर समय कहते, अभी तो वक़्त नहीं है
था वक़्त हर दम वक़्त , हम बेवक्त  बेवजह

हम सोचते रहते, वक़्त क्यों बीत रहा है
इस सोचने में बीत गया वक़्त बेवजह

हर जिंदगी दीवार पर लटकी हुई घडी
रुक जाये सांसों कि सुई किस वक़्त बेवजह

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