Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

पूरा जीवन एक चलचित्र है

हर पल
कोई भी पल
कभी मरता नहीं 
बीत जाता है 
ख़त्म नहीं होता 

वास्तव में 
हर पल वहीँ रहता है 
जहाँ वो था 
हम  ही आगे बढ़ जाते हैं
हम ही बीत जाते हैं 
हम ही ख़त्म होते रहते हैं 
हर दिन 
हर पल 

कभी पीछे मुड़ के देखो
तो नजर आयेंगे 
वो तमाम पल 
जिन्हें हम समझते थे 
कि ख़त्म हो गए हैं 
वे पल छिपे होते हैं 
कहीं ना कहीं 

कुछ धुंधले ख्वाबों में 
कुछ स्कूल की किताबों में 
कुछ पुराने कपड़ों में 
कुछ आकाश   को तकती छत में 
कुछ तुड़े मुड़े पुराने ख़त में 
कुछ पुराने बिना तार वाले गिटार में 
कुछ कमरों के बीच खुलने वाले किवाड़ में 

ये पल बड़े विचित्र हैं 
आँखे मूँद कर देखो 
हर पल एक चित्र है 
दिल के परदे पर देख 
पूरा जीवन एक चलचित्र है     

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