मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
शनिवार, 24 जुलाई 2010
अपने आप से बातें
मैं अपने आप से बातें करता रहता हूँ
अपना साथी खुद बन जाता
सुख दुःख की सब बातें कहता
सुख दुःख की सब बातें सुनता
फिर मन के घोड़े पर चढ़ कर
मैं चाहूं जहाँ चला जाता
मैं अपने आप से बातें करता रहता हूँ
' तू कौन?'- कभी यह प्रश्न किया खुद से
'मैं कौन ?' - प्रश्न ही उत्तर बन आया
कितना साधारण प्रश्न किया मैंने
कितना मुश्किल उत्तर पाया मैंने
क्या मैं हूँ - वो जो नाम मेरा लिखा
पर वह तो बस एक शब्द मुझे दिखा
मैं शब्द नहीं , बस नाम नहीं हूँ मैं
'मैं कौन?;- प्रश्न वैसा ही खड़ा रहा
मैं अपने आप से बातें करता रहता हूँ
दर्पण के अन्दर जो है खड़ा हुआ
वह ही तो 'मैं हूँ ' - ऐसा ही तो दिखता हूँ
पर वह तो इक परछाई है - फिर प्रश्न उठा
जब तक दर्पण तब तक ही बस परछाई है
' इतना लम्बा चौड़ा तन ही तो बस तू है '
अन्दर से फिर आवाज कोई आयी
' यह मैं हूँ'- तो फिर ढूंढ रहा है कौन ?
'यह मैं हूँ' - तो फिर प्रश्न पूछता कौन ?
मेरे अन्दर क्या है - यह मुझको पता नहीं
मेरे अन्दर क्या क्या घटता कुछ पता नहीं
कैसे साँसे अन्दर जाती बाहर आती
कब तक आती कब तक जाती यह पता नहीं
कैसे तन के अन्दर शोणित बहता रहता
कैसे दिल धड़क धड़क के कुछ कहता रहता
कैसे सब कुछ चलते चलते फिर रुक जाता
कैसे यह तन सूखी डाली सा झुक जाता
क्या बस शरीर के रहने तक ही मैं रहता
क्या इसके आगे फिर मेरा अस्तित्व नहीं
क्या इसके आगे इन प्रश्नों का अर्थ नहीं
इतना ही है तो यह जीवन क्या व्यर्थ नहीं
कितने सारे प्रश्नों की झड़ी लगा डाली
मैंने खुद को ही उलझन में है डाल लिया
अब बहुत हो चुकी खुद से खुद की बात बहुत
कह कर अपने प्रश्नों को खुद ही टाल लिया
खुद से बातें करना कितना अच्छा लगता
पल भर को भी तन्हाई पास नहीं आती
पर खुद से इतने जटिल प्रश्न भी मत करना
खुद को खुद की सच्चाई रास नहीं आती
मैं अपने आप से बातें करता रहता हूँ
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अपने आप को धोंधना...और स्वयं से बात करना...सुन्दर अभिव्यक्ति ...
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