Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

लिखो कुछ और तुम

दर्द की कविता मत लिखो
कोई लेने वाला नहीं है
कागजों में मत ढूंढो दवा
कोई देने वाला नहीं है

देंगे सब झूठी तसल्ली
और झूठी आह भी
शेर अच्छा ना लगा तो
देंगे झूठी वाह भी

फायदा क्या शब्द को
कलम बना कर
आंसुओं की दवात में
गहरा डुबा कर

चंद रोते ओ बिलखते
शेर लिख कर
बेचारा, मासूम,
परेशान दिख कर

लोग तो पढ़ते हैं
टाइम पास को
है कहाँ टाइम
कि दें  उदास को

लिखना ही है
तो लिखो कुछ और तुम
कुछ रूमानी,
आसमानी छोर तुम

या तो जो
दिल को जरा सहला सके
या किसी को
जो समझ ना आ सके

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  2. वाह क्या सच्छायी लिखी है...रचना पढ़ के ये प्रन करने का दिल कर रहा हें की अब के बाद उदासी भरा नहीं लिखेंगे...मगर...किन्तु..परन्तु...ये प्रन निभाना जरा मुश्किल है.

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  3. अनामिकाजी ! उदासी भी जीवन का एक खास रूप है . लिखते रहिये .

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