Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 25 जुलाई 2010

समर्पित जोन कीट्स को

बहुत सालों के बाद

निकला हूँ शहर से बाहर
अपनी गाडी में बैठ कर
एक छोटे बच्चे सा उत्साह लिए
गाडी अभी तक मोहल्ले से निकली भी नहीं
और मन ने कल्पना शुरू कर दी
हरे भरे खेतों की
सड़क के किनारे खड़े दरख्तों की
खुले आसमान की
पंक्षियों के कलरव की
गाँव के बच्चों के झुण्ड की
रस्ते में आने वाले पनघट की

सोचता हूँ कुछ रास्ता तय होने के बाद
किसी ढाबे पर रुक कर चाय पीऊँगा
मसाले वाली
कल्पना करते करते काफी समय निकल गया
लेकिन ये शहर तो -
ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा
आखिर झुंझला कर पूछा
ड्राईवर से - क्यों भैया
शहर से बाहर ही जा रहे हो न ?
ड्राईवर ने कहा - साहब , शहर से बाहर तो कब के आ चुके
कुछ समझ में नहीं आया


पूछा- अरे भाई , शहर कहाँ ख़त्म हुआ ?
कोई खेत नहीं,
कोई गाँव नहीं
कोई पनघट नहीं
कोई ढाबा नहीं
वो हंस के बोला -
साहब , लगता है कभी बाहर निकले नहीं
सर, मुंबई के बाहर ये सब कहाँ मिलेगा
मुंबई के बाहर यही गाँव है
पक्की इमारतें
सड़क के किनारे होटल
दारू के अड्डे
और टायर पंक्चर की दुकाने
जहाँ लोकल नहीं पहुँचती समझो गाँव है
और इस प्रकार मुझे समझा दिया
गाँव का असली मतलब
उस ड्राईवर ने


और तभी मुझे याद आयी
अंग्रेजी के मशहूर कवि जोन कीट्स की एक रचना
जिसका शीर्षक था -
'वो जो बहुत लम्बे समय से शहर के घेरे में था'**
जिसमे कवि एक दिन शहर के बाहर बिता कर लौटता है
खुले नीले आसमान और
घनी हरी भरी घास की स्मृतियों के साथ
पृकृति के साथ बिताया वो दिन
उसे लगता है कितनी जल्दी ख़त्म हो गया
और उस एक दिन ने
जन्म दे दिया एक खूबसूरत कविता को


अच्छा हुआ तुम पैदा नहीं हुए इक्कीसवी सदी में
और मुंबई में
वर्ना विश्व वंचित रह जाता एक महान कवि से






**To One who has been Long in City Pent

To one who has been long in city pent,
'Tis very sweet to look into the fair
And open face of heaven,--to breathe a prayer
Full in the smile of the blue firmament.
Who is more happy, when, with heart's content,
Fatigued he sinks into some pleasant lair
Of wavy grass, and reads a debonair
And gentle tale of love and languishment?
Returning home at evening, with an ear
Catching the notes of Philomel,--an eye
Watching the sailing cloudlet's bright career,
He mourns that day so soon has glided by:
E'en like the passage of an angel's tear
That falls through the clear ether silently.

[By John Keats (1795-1821) ]

2 टिप्‍पणियां:

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  2. मै इत्तेफाक से ही आपके ब्लॉग पर आज आया आपकी कविता पढ़ी बहुत ही अच्छी लगी. बहुत सरल भाषा में लिखी है. बहुत खूब!!!

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