Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

तनहाइयाँ

रास्ते लम्बे नहीं , लम्बी हैं ये तनहाइयाँ
आदमी बौना मगर , लम्बी हैं ये परछाइयाँ

मन यूँ ही बस डूबता उतरा रहा हर लहर में
है किसी सागर से गहरी मन की ये गहराइयाँ

बेसुरा हर राग है मन में उदासी छा रही
मन दुखी तो बेसुरी लगती है ये शहनाइयां

कोई पत्ता भी नहीं हिलता हवा खामोश है
उमस तो घटती नहीं कितनी चले पुरवाइयां

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