गूँज रही चित्कारें पेरिस में
गलियों में रोने की आवाजें हैं
फुटबॉल जहाँ पर खेला जाना था
जहाँ जोश दर्शकों में भर आना था
अफरा तफरी है मची वहां पर भी
प्राणों को लेकर भाग रही जनता
संगीत प्रेमियों का वो मंदिर था
सुर के साधन का साधन अंदर था
कानों में मिश्री घोल रहे सुर से
श्रोताओं की आँखे भी मूंदी थी
फिर वहां अचानक कर्कश आवाजें
बम की गोली चलने की वहीँ कहीं
फिर खून से हुए लथ पथ श्रोता सब
लाशों से पटी पड़ी थी वो भूमि
ये कैसा शैतानी हंगामा बरपा
क्यूँ रास नहीं आती उनको दुनिया
क्यों मौत लिए फिरते ये वाशिंदे
ईश्वर ने नहीं बनाये ये बन्दे
क्यूँ अल्लाह के ही नाम लिखे जाते ये कृत्य
क्यूँ मजहब की दीवारों पर ही लिखते
ये कैसे बन्दे है ये जेहादी
ये मानव के ही रूप में दानव से दिखते
एफिल टॉवर , तू देख रहा है न
ऊंचाई से तुझको सब दीखता
पहचान जरा कर ले इन चेहरों की
गिन गिन कर इनसे बदले तू लेना
हर एक जान की करले गिनती तू
कितना है खून बहा करले गणना
मानवता के इन हत्यारों से तू
मानवता का हिसाब चुकता करना