क्यूँ आजकल हवाएँ कुछ सर्द सर्द है
क्यूँ आजकल फ़िज़ाएं भी गर्द गर्द हैं
चेहरे सुबह की शमां से यूँ बुझे हुए
हर आँख में उदासी क्यूँ जर्द जर्द है
खुशियां सभी की जैसे काफूर हो गयी
मुस्कान में भी दिखता क्यूँ दर्द दर्द है
ये नौजवान पीढ़ी क्यूँ बुजुर्ग हो गयी
नामर्द बन रहा क्यूँ हर मर्द मर्द है
क्यूँ आजकल फ़िज़ाएं भी गर्द गर्द हैं
चेहरे सुबह की शमां से यूँ बुझे हुए
हर आँख में उदासी क्यूँ जर्द जर्द है
खुशियां सभी की जैसे काफूर हो गयी
मुस्कान में भी दिखता क्यूँ दर्द दर्द है
ये नौजवान पीढ़ी क्यूँ बुजुर्ग हो गयी
नामर्द बन रहा क्यूँ हर मर्द मर्द है
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