Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 19 मई 2015

सुख और दुःख

मेरे मन में खुशियाँ हैं
मेरे मन में दुःख भी हैं
खुशियों से खुश होता
दुःखों  से पर रोता

है सभी चाहते खुशियां
है कौन चाहता पीड़ा
पर दोनों का बंधन है
खुशियों के संग ही पीड़ा।

दुःखों  के बिन खुशियों का
खुशियों के बिन दुःखों  का
कुछ अर्थ नहीं होता है
कुछ व्यर्थ नहीं होता है।

अँधेरे बिना उजाले
भी लगते हमको काले
अँधेरे का कालापन
ही चमकाता उजलापन।

गर्मी में ही सर्दी की
सर्दी में ही गर्मी की
कीमत तय होती है
दोनों की जय होती है।

हर रात सुबह को लाती
हर सुबह ख़त्म हो जाती
फिर रात  नयी इक आती
जो नयी भोर बन जाती।

जैसे सुख जीवन में
ईश्वर का इक प्रसाद
वैसे ही बस आवश्यक
इस जीवन में अवसाद ।


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