Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 16 नवंबर 2015

एफिल टॉवर


गूँज रही चित्कारें पेरिस में
गलियों में  रोने की आवाजें हैं
फुटबॉल जहाँ पर खेला  जाना था
जहाँ जोश दर्शकों में भर आना था
अफरा तफरी है मची वहां पर भी
प्राणों को लेकर भाग रही जनता
संगीत प्रेमियों का वो मंदिर था
सुर के साधन का साधन अंदर था
कानों में मिश्री घोल रहे सुर से 
श्रोताओं की आँखे भी मूंदी  थी
फिर वहां अचानक कर्कश आवाजें
बम की गोली चलने की वहीँ कहीं
फिर खून से हुए लथ पथ श्रोता सब
लाशों से पटी पड़ी थी वो भूमि

ये कैसा शैतानी हंगामा बरपा
क्यूँ रास नहीं आती उनको दुनिया
क्यों मौत लिए फिरते ये वाशिंदे
ईश्वर ने  नहीं बनाये ये बन्दे
क्यूँ  अल्लाह के ही नाम लिखे जाते ये कृत्य
क्यूँ मजहब की दीवारों पर ही लिखते
ये कैसे बन्दे है ये  जेहादी
ये मानव के ही  रूप में दानव से दिखते

एफिल टॉवर  , तू  देख रहा है न
ऊंचाई से तुझको सब दीखता
पहचान जरा कर ले इन चेहरों की
गिन गिन  कर इनसे बदले तू लेना
हर एक जान की करले गिनती तू
कितना है खून बहा करले गणना
मानवता के इन हत्यारों से तू
मानवता का हिसाब चुकता करना



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