मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
गुरुवार, 4 अप्रैल 2013
जीवन फिर महक उठेगा यह
माना मुसीबतें आई हैं
माना कि बदली छाई है
कुछ क्षण को अँधेरा भी है
दुखों ने यूँ घेरा भी है
आखिर ये रजनी जाएगी
इक नया सवेरा लाएगी
ये बदली भी खो जायेगी
अँधेरे को धो जायेगी
नव आशाएं फिर जागेंगी
और सब मुसीबतें भागेंगी
जीवन फिर महक उठेगा यह
कलरव सा चहक उठेगा यह
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