( मेरे दादाजी स्वर्गीय लालमन जी की एक रचना )
जिनके घर उजियार घनेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर में अधिक अँधेरा - एक दिया उनको भी दो
होली दीवाली क्या जाने वो - अन्न न एक समय जिनको
एकादशी लगाती फेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर का आसमान छत - और धरती ही आँगन है
है केवल चंदा का उजेरा - एक दिया उनको भी दो
महलों की तो दूर जिन्हे - झोपड़ियों की भी आस नहीं
फुटपाथों पर जिनका डेरा - एक दिया उनको भी दो
कहे रात की क्या दिन में भी - भटक रहे अँधेरे में
मानो कहा आज तुम मेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर उजियार घनेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर में अधिक अँधेरा - एक दिया उनको भी दो
होली दीवाली क्या जाने वो - अन्न न एक समय जिनको
एकादशी लगाती फेरा - एक दिया उनको भी दो
जिनके घर का आसमान छत - और धरती ही आँगन है
है केवल चंदा का उजेरा - एक दिया उनको भी दो
महलों की तो दूर जिन्हे - झोपड़ियों की भी आस नहीं
फुटपाथों पर जिनका डेरा - एक दिया उनको भी दो
कहे रात की क्या दिन में भी - भटक रहे अँधेरे में
मानो कहा आज तुम मेरा - एक दिया उनको भी दो
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