कभी मन में आता है
आज कुछ लिखूं
लिखने बैठता हूँ
तो मस्तिष्क खाली सा हो जाता है
घंटों बैठा रहता हूँ
इस निर्जीव से की-बोर्ड पर
जो लिखना चाहता हूँ
वो सच्चाई लिखने की हिम्मत नहीं
बाकी कुछ भी लिखा तो
बेमानी होगा
घटनाओं को याद करना
जैसे कि उन पलों को फिर से जीना
हिम्मत नहीं होती
झेल जाना नियति होती है
लेकिन जान बूझ कर दुबारा झेलना दुस्साहस
कितनी खौफनाक होती है सच्चाई
शायद इसी लिए हर आदमी
डरता है मौत की बात करने से
ये जानते हुए भी कि
मृत्यु तो निश्चित है
नहीं है लिखने को कुछ
फिर लिखेंगे
किसी और दिन
कोई और बात
आज कुछ लिखूं
लिखने बैठता हूँ
तो मस्तिष्क खाली सा हो जाता है
घंटों बैठा रहता हूँ
इस निर्जीव से की-बोर्ड पर
जो लिखना चाहता हूँ
वो सच्चाई लिखने की हिम्मत नहीं
बाकी कुछ भी लिखा तो
बेमानी होगा
घटनाओं को याद करना
जैसे कि उन पलों को फिर से जीना
हिम्मत नहीं होती
झेल जाना नियति होती है
लेकिन जान बूझ कर दुबारा झेलना दुस्साहस
कितनी खौफनाक होती है सच्चाई
शायद इसी लिए हर आदमी
डरता है मौत की बात करने से
ये जानते हुए भी कि
मृत्यु तो निश्चित है
नहीं है लिखने को कुछ
फिर लिखेंगे
किसी और दिन
कोई और बात
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