मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
शनिवार, 21 अगस्त 2010
संपूर्ण समर्पण
अनुभूति तुम , अनुभूत मैं अविभाव तुम, अविभूत मैं
अनुराग तुम , अनुरक्त मैं आशक्ति तुम, आशक्त मैं
दुर्लब्ध तुम, उपलब्ध मैं हो शब्द तुम, निःशब्द मैं
अभिव्यक्ति तुम , अभिव्यक्त मैं हो भक्ति तुम , हूँ भक्त मैं
महेंद्र जी बहुत ही सुन्दर शब्दों का गठजोड़ किया है इतनी सुन्दर भावना और इतना बेजोड़ शब्दविन्यास बधाई हो
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