क्षण क्षण चिराग जल रहा 
हर वक़्त यह तन गल रहा 
हर सांस कुछ ले जा रही 
हर वक़्त जीवन जल रहा 
हर सुबह उगता एक दिन
हर शाम इक दिन ढल रहा 
मुट्ठी में भींचा रेत को 
सब कुछ मगर फिसल रहा 
चेहरे पे झुर्री आ गयी 
परतों में एक एक पल रहा 
जो भविष्य था वो तो आज है 
वो जो आज था हुआ कल रहा 
हम तेज कितना भाग लें 
पर काल सब निगल रहा 
यूँ ही जिंदगी तो खिसक गयी 
अब हाथ बैठा मल रहा
 
 
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंसोचे 'मजाल' बस मौत क्या,
जवाब देंहटाएंही जिंदगी का हल रहा!
मुट्ठी में भींचा रेत को
सब कुछ मगर फिसल रहा
... शब्दों का बदिया चुनाव !
प्रिय महेंद्र!
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी बनी है. जीवन की सच्चाई जस की तस दिखती है.
एक बात कहूं! यह भी सच है की सही अभिव्यक्ति संजीदा विषयों में ही आ सकती है पर कभी-कभी कुछ हल्का भी लिखोगे तो तुम्हारा दूसरा पहलु भी सामने आएगा.
मेरा यह मतलब नहीं की तुम अपने वर्तमान विषय से हट जाओ, पर मैं सोचता हूँ की कुछ व्यंग लिखने का प्रयास करोगे तो खूबसूरती और बढ़ेगी.
शशि मिमानी