Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

इस तरह कुछ जियें

आज जीने दो इस कदर मुझको
कल जो मर जाएँ भी तो ग़म न रहे
इस तरह कुछ जियें ज़माने में
कोई ये कह न सके की हम न रहे


रहने को घर की क्या जरूरत है
दिल के कोने में घर बना लेंगे
बस इसी जन्म की यादें काफी
इस के बाद फिर कोई जनम न रहे


सैकड़ों साल यूँही जीने से
चंद खुशियों के दिन ही काफी है
उम्र की शाम ढल चले; पहले
उठ के चल दें ,कोई भरम न रहे


कोई रोता है जब कोई मरता
बस ये रस्मों रवाज ऐसे हैं
हर कोई हंस के विदाई दे दे
आँख जरा सी भी कोई नम न रहे

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