आज जीने दो इस कदर मुझको 
कल जो मर जाएँ भी तो ग़म न रहे 
इस तरह कुछ जियें ज़माने में 
कोई ये कह न सके की हम न रहे 
रहने को घर की क्या जरूरत है
दिल के कोने में घर बना लेंगे
बस इसी जन्म की यादें काफी 
इस के बाद फिर कोई जनम न रहे
सैकड़ों साल यूँही जीने से 
चंद खुशियों के दिन ही काफी है 
उम्र की शाम ढल चले; पहले 
उठ के चल दें ,कोई भरम न रहे 
कोई रोता है जब कोई मरता 
बस ये रस्मों रवाज ऐसे हैं 
हर कोई हंस के विदाई दे दे 
आँख जरा सी भी कोई नम न रहे
 
 
बहुत अच्छा लिखा आपने...
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'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
बहोत ही भावमयी रचना
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