Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

चल मेरे भाई खेलें खेल

चल मेरे भाई खेलें खेल
लुक्का छिपी छुक छुक रेल
खूब चटपटी बनती है
खेलों की चल खा लें भेल


खेलें चल किरकेट यहाँ
बनते धन्ना  सेठ यहाँ
कुछ तो घपला हुआ जरूर
एक था मोदी एक थरूर
दोनों का क्यों निकला तेल
चल मेरे भाई खेलें खेल


या फिर चल होकी खेलें
महिलाओं को संग ले ले
बन जाये आशिक ऐसे
कोच बने कौशिक जैसे
करें प्रेम का प्यारा मेल
चल मेरे भाई खेले खेल


चल कोई ऊंचा काम करें
दुनिया भर में नाम करें
खेलें खेल खिलाडी सा
नेता हो कलमाड़ी सा
नीचे वाला जाये जेल
चल मेरे भाई खेलें खेल

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achchha vyng hai sidhe shbdon me khari baat kahana aapaka andaaj hai

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  2. ओये होए महेंद्र जी ......ये खूबसूरत चित्र ......!!!!!
    जी चाहता है चुरा ले जाऊं .....
    गज़ब का है ......wao .....!!
    शिव जी पारवती सी लगती है ...अद्भुत .....!!

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  3. स्वागत हरकीरत जी . आपको चित्र पसंद आया तो आप ले जाईये. इन्टरनेट के अनंत महासागर में से ही चुना हुआ है . मेरी अपनी तो मेरी कवितायेँ हैं , अच्छी लगे तो उन्हें भी ले जाइये .

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  4. Dear Mahendra,


    After a long time my laptop has finally been fully formatted and functional. This poem is just very relevant and straight forward on current affairs.


    Shashi Mimani

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