Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 31 दिसंबर 2017

शुभकामनायें

आखिरी दिन २०१७ का ,
बीत गए बारह महीने
जो शुरू हुए थे आशाओं के साथ
हर दिन ही तो होता है शुरू -
नयी आशाओं के साथ
हर शाम देती है फैसले दिन भर की बातों पर
हर दिन होता है एक मिश्रण दुःख और सुख का
हर दिन होता है आशाओं और निराशाओं का
कभी खुशियां मना  लेते हैं
कभी दुखों को झेल लेते हैं

ऐसे ही बीतते हैं बारह महीने
जैसे हर दिन
महीने क्यों हर वर्ष भी !
वर्ष ही क्यों पूरा जीवन ही तो !
जीवन का हर क्षण सम्पूर्ण होता है
शुभकामनायें नए वर्ष के लिए
हर महीने के लिए
हर दिन के लिए
शुभकामनायें आने वाले हर क्षण के लिए

शनिवार, 30 दिसंबर 2017

हे नचिकेता !



कठोपनिषद कहता है -
पिता द्वारा क्रोध में शापित होकर
निकल पड़ा नचिकेता
मृत्यु की खोज में
भटकता रहा भटकता रहा
किन्तु उसे मृत्यु कहीं नहीं मिली !
आश्चर्य है
सब जगह ढूँढा -
मुंबई क्यों नहीं आया !

नचिकेता !
यहाँ तुम मृत्यु को नहीं ढूंढते
बल्कि मृत्यु तुमको ढूंढती
जहाँ जाओ वहां मिलती मृत्यु
सड़कों पर खुले गटर के रूप में
रेलवे स्टेशनों पर संकीर्ण सीढ़ियों के रूप में
फुटपाथ पर लगे पेड़ों के नीचे
पुराने मकानों के ढहने में
बरसात में सब कुछ के बहने में
बीच पर समुद्र के उफान में
और जो मृत्यु तुम्हे नहीं मिली ब्रह्माण्ड में
वो तो तुम्हे भोजन के समय मिलेगी
कमला मिल जैसे अग्निकांड में
इसलिए आज के युग के नचिकेता
भाग जाओ यहाँ से
गाँव में पिता का क्रोध अच्छा है
मुंबई की असमय मौत के क्रोध से

रविवार, 24 सितंबर 2017

मन की बात कही न कही


ग़र देख किसी दुखियारे को
ऐसे किस्मत के मारे को
कुछ दर्द सा दिल में हुआ नहीं
तेरी आँख से आंसू बहे नहीं
फिर होकर के भी ये नदियां
क्या फर्क पड़ा कि  बही न बही !

फिर तेरा होना न होना
जैसे होकर भी न होना
बस अपनी खातिर ही जीना
बस अपनी खातिर ही मरना
क्या मोल तेरी इन साँसों का
क्या फर्क पड़ा कि रही न रही !

आंसू न किसी के पोंछ सके
कोई आस किसी को बंधा न सके
दो शब्द दिलासा के न कहे
करुणा के न कुछ बोल कहे
क्या मूल्य है तेरे दर्शन का
जब मन की बात कही न कही !

जब सहन कर लिया हर दुःख को 
जब ग्रहण कर लिया हर सुख को
अपने सुख दुःख के आगे भी
औरों के दुःख में जागे भी
औरों के दुःख न सहन हुए
फिर अपनी पीर सही न सही !

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

दंश



विश्व से सम्बन्ध अपने , पर पडोसी क्रुद्ध क्यों है
देश सब कुटुम्ब हैं, सरहद पे लेकिन युद्ध क्यों है ?

भाइयों में बाँट होती , माँ बँटी इस देश में थी
दंश माँ के दर्द का ,अब तक गला अवरुद्ध क्यों है ?

कुछ गलत हरगिज़ हुआ था , जब लिया ये फैसला था
फैसले लेकर ग़लत भी , वो बने प्रबुद्ध क्यों है ?

कौन कहता है आज़ादी, मिल गयी हमको लडे बिन 
जो लड़ाई तब हुयी वो चल रही अविरुद्ध क्यों है ?

बन गए चाचा ,पिता वो , देश जब ये जल रहा था
जिनके दामन खून से लथपथ रहे वो शुद्ध क्यों है ?

सोमवार, 17 जुलाई 2017

थकन



थक गया है आदमी इक खोज से
मर रहा क्यूँ ख्वाहिशों के बोझ से

तब से भागा फिर रहा हर रोज ये
चल पड़ा था पैर से जिस रोज से

जिंदगी की मौज  पाने के लिए
भिड़  रहा हर सू दुखों की मौज से

चाहते हैं अमन की सुकून  की
लड़ रहा है नफरतों की फ़ौज से
                        

रविवार, 16 जुलाई 2017

राजनैतिक छुआछूत

राजनैतिक छुआछूत



छुआछूत
हमारे देश में हमेशा से विध्यमान है
कुछ सामाजिक अंधविश्वासों से
कुछ धार्मिक रीति रिवाजों से
कोई जातिभेद के कारण  परेशान है
छुआछूत हमेशा से विध्यमान है !

लेकिन एक छुआछूत ऐसा भी है
जो पहले नहीं था , लेकिन अब है
इसकी खास बात -
जो कभी अछूत नहीं था वो अब है
जो पहले अछूत था , वो अब नहीं है
अब नहीं है तो क्या फिर कभी नहीं होगा
इसकी कोई गारंटी नहीं है साहब ,
कब होगा और कब नहीं होगा।

अब बीजेपी को ही देखिये
राजनीति का सबसे बड़ा अछूत दल
दल क्या था बस साम्प्रदायिक ताकतों का दलदल
हाँ यही कहती थी सारी धर्म निरपेक्ष ताकतें
हमारा और किसी से कितना भी विरोध क्यों न  हो
लेकिन साम्प्रदायिक ताकतों को दूर रखना है


लेकिन हुआ क्या ,
दूर रखने वाले स्वयं दूर हो गए सत्ता से
चुप रहने वाले बदल गए बुद्धिमत्ता से
जैसे ही मौका मिला बदल लिए विचार
बिना सत्ता वाले विचारों का क्या डाले अचार

चर्चा करें - कुछ नामों की
और उनके बदले हुए अंजामों की
एक थी  बहुगुणा जोशी रीता
देखिये उन संग क्या बीता
कांग्रेस की प्रवक्ता बड़ी मुखर थी
सांप्रदायिक ताकतों की निंदा में प्रखर थी
यूपी चुनाव में उन्हें हाथ ने यूँ काटा
पलट कर उन्होंने मारा कांग्रेस को चाटा
समय रहते पलट गयी
सारी भाषा बदल गयी
कहाँ वो प्रवक्ता मुखर गया
समझो बुढ़ापा सुधर गया।

बात करें सत्ता के खुमार की
भई अपने पुराने दोस्त नितीश कुमार की
यूँ तो नेता जेडी यु के थे दमदार
लेकिन बड़े लचीले असरदार
मंत्रिपद लेने में गुरेज नहीं था
बीजेपी से भी परहेज नहीं था
खूब मौज की एनडीए काल में
रेल कृषि परिवहन जो मिला , खुश  रहे हर हाल में

केंद्र में सत्ता गयी हाथ से
सीएम बने बीजेपी के साथ से
फिर अचानक ये पूत कपूत हो गया
इसे भी राजनैतिक छुआछूत हो गया
मोदी का नाम इन्हे सुहाया नहीं
इन्हे उम्मीदवार क्यों बनाया नहीं ?

बस फिर से जुड़ गए लालू और कांग्रेस की सर्कार से
खुल कर चल रहे उन्मुक्त भ्रष्टाचार से
जब तक चला चलाते रहे
बदले में उनको बचाते रहे
लेकिन आजकल फिर हुआ ह्रदय परिवर्तन है
किसी नए युग का निमंत्रण है
नितीश फिर से ईमानदारी का दूत हो गया
एक बार फिर राजनैतिक छुआछूत हो गया

तेजस्वी को जाना पड़ेगा
लालू को हटाना पड़ेगा
कांग्रेस तो यूँ ही टेका लिए हुए है
बीजेपी टकटकी लगाए हुए है
फल फिर टपकेगा  पेड़ से
बस टपकते ही लपक लेंगे बेर से।


छुआछूत के मारे और बहुत पड़े हैं
हमें भी ले लो कबसे लाइन में खड़े हैं
शरद पवार , मुलायम , और नारायण राणे
इनका नंबर कब आये कौन जाने !




मंगलवार, 30 मई 2017

अलग थलग





अलग थलग



मेरे एक मुस्लमान दोस्त ने मुझ से पूछा -

आखिर हम भी भारतीय हैं ,

यहीं पैदा हुए , यही पढ़े , यहीं बड़े हुए

फिर भी हम यहाँ के समाज में अलग थलग पड़  जाते हैं

ऐसा क्यों ?



मैं सोच में पड़ गया ;

फिर मैंने पूछा -

क्या तुम अलग थलग हो ?

उसने कहा - मेरी बात नहीं कर रहा

मैं बात कर रहा हूँ - हमारी वृहत्तर कौम की !



मुझे मेरा उत्तर मिल गया

मैंने कहा -

पहला प्रश्न तुम अपने आप से पूछो

क्या अंतर है तुम में और तुम्हारी वृहत्तर कौम में ?

क्यों नहीं तुम अलग थलग

और क्यों है वो अलग थलग ?



वो शायद अलग पड़  जाते हैं

जब वो पायजामा पहनते हैं -

जमीन से छह इंच ऊपर ;

लेकिन सिर्फ उतने ही अलग

जितना की एक धोती धारी युवक -

अपनी कॉलेज की क्लास में पड़ता है



वो शायद अलग पड़ते हैं ,

अपनी अलग सी दिखने वाली दाढ़ी से

जिसके ऊपर की मूंछे सफाचट हैं

लेकिन उतना ही जितना कि -

एक मुंडे सर और लम्बी चोटी  वाला व्यक्ति



वो शायद अलग लगता है ,

अपनी जालीदार टोपी में

लेकिन उतना ही  जितना -

एक दक्षिण भारतीय

उत्तर भारत के एक कार्यक्रम में

सफ़ेद लुंगी पहन कर दीखता है



लेकिन जानते हो

तुम्हारी कौम कब अलग थलग पड़ती है

तब - जब वो कहती है कि -

उसका मज़हब उसके देश से ऊपर है

इस तरह तो उन्हें अपने भारतीय हिन्दू भाइयों

से ज्यादा प्रिय है पाकिस्तानी मुसलमान !



तुम अलग थलग तब पड़  जाते हो

जब तुम आँख मूँद लेते हो इस सच्चाई से

की तुम्हारी ही कौम की स्त्रियों पर कितना जुल्म होता है

कभी तीन तलाक़ के नाम पर

कभी हलाला के नाम पर

तुम्हारा सारा विवेक , तुम्हारा सारा ज्ञान

सिमट के रह जाता है उन मुल्लों की व्याख्या में

जो जूठा सहारा लेते हैं कभी कुरान का कभी सरिया का

क्योंकि तुम्हारे जैसे पढ़े लिखे भी

भारत के संविधान को नीचे मानते हैं

इन मुल्लों की व्याख्या से



तुम अलग थलग पड़  जाते हो

जब तुम्हारा खून नहीं खौलता

हेड कांस्टेबल प्रेम सागर और नायब सूबेदार सिंह के -

सर कटे धड़ देख कर

लेकिन तुम तैश में आ जाते हो -

एक सेना पर पत्थर मारने वाले बदमाश

फारूक दर को जीप के आगे बाँधने से

और मांग करते हो

उस बहादुर जांबाज लिटुल गोगोई पर कार्यवाही की



मित्र तुम्हारे उत्तर तुम्हारे अंदर से ही निकलेंगे

जब तुम अपनी कौम से पूछोगे -

बुरहान वानी जैसे आतंकवादी तुम्हारे हीरो क्यों हैं

और नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर देशभक्त तुम्हारे लिए जीरो क्यों है ?

गुरुवार, 18 मई 2017

निर्लज्ज पाकिस्तान



हारे , थके , पिटे हुए देश तुम
तुम्हे आत्मग्लानि क्यों नहीं होती
जिस देश से भीख मांग कर अलग हुए
उस देश के साथ लड़ते रहते हो
लड़ते भी कहाँ हो , कायर जो ठहरे
चूहों की तरह बिल से निकलते , हो कुतरने के लिए
बात करते हो मजहब की
मारते हो कश्मीरियों को
बनते हो उनके रहनुमा
पत्थर के खिलोने बांटते हो
सफ़ेद दाढ़ी की आड़ में
काला दिल पालते हो
और खिसियानी बिल्ली की तरह
दबोच लेते हो कुलभूषण से आम आदमी को
और फिर देते हो यातनाएं
फाँसी का फंदा बना लिया तुमने
अपनी खीज का खम्बा नोचने के लिए
आज दुनिया देखेगी तुम्हारी कारस्तानी
जब अंतर्राष्ट्रीय अदालत फैसला सुनाएगी
फंदा तुम्हारा तुम्हारे लिए ही होगा
नए बहाने ढूंढने शुरू कर दो




शनिवार, 22 अप्रैल 2017

इति विपक्ष एकता प्रकरणम

विपक्षी दलों की एकता

आपने भी पढ़ा होगा की दो दिन पहले नितीश कुमार  श्रीमती सोनिया गाँधी से मिलने गए । मुद्दा था - राष्ट्रपति चुनाव में पूरा विपक्ष एक होकर अपना उम्मीदवार उतारे। सब कुछ तो मीडिया को भी पता नहीं होता। ये रही अंदर की बात -

नितीश - सोनिया जी , आज मैं एक खास मुद्दे पर आपसे बातचीत करने आया हूँ ; मेरा प्रस्ताव है की हम सभी विपक्ष के लोग एकजुट होकर राष्ट्रपति पद का एक उम्मीदवार चुने और मोदी जी के कैंडिडेट को हरा कर उनका घमंड चकनाचूर करें।
सोनिया - आपका विचार अच्छा है , लेकिन क्या मेरे को कैंडिडेट बनाने से मेरा फोरेन रूट का प्रॉब्लम नहीं आएगा ?
नितीश - बिलकुल आएगा , वर्ना आपसे अच्छा कैंडिडेट कौन होता ! वैसे लालूजी भी बहुत इंटरेस्टेड हैं , लेकिन उनको सबका समर्थन नहीं मिलेगा।  मेरे बारे में आपका क्या ख्याल है ? लोग मुझको पसंद करते हैं।

( तभी लालू का प्रवेश )
लालू - क्यों नितीश भाई , आपने चर्चा कर ली हमारे नाम की ?
नितीश - (फुसफुसा कर ) - मैडम ने ना कर दिया है।
लालू - क्यों मैडम ? जब भी कांग्रेस पर संकट पड़ा है , हमने आपका साथ दिया है।
सोनिया - संकट भी तो आपके कारण पड़ा है !

( अखिलेश का प्रवेश )
अखिलेश - सब को पिताजी की तरफ से नमस्ते !
लालू - और तुम्हारी तरफ से ?
अखिलेश - अंकल , हमारी नमस्ते कौन सुनता है ? यू पी  के चुनाव के बाद से ही हम दोनों नौजवानो के सितारे गर्दिश  में है।
सोनिया - तुमने राहुल को बिना मतलब फँसाया !
अखिलेश - आंटी , जाने दें , किसको किसने फँसाया। फिलहाल मैं एक दरख्वास्त लेकर आया हूँ। जब से हम यू पी चुनाव हारे हैं , पिताजी बौखला गये हैं। हारने का कारण मुझे बताते हैं ; जबकि सच्चाई ये है कि मेरे कारण उनकी इज्जत बच गयी ; वर्ना मुख्यमंत्री वो भी होते तो हारना निश्चित था। जहाँ तहाँ मेरे बारे में उल्टा सुलटा बकते हैं। उनके साथ बैठकर शिवपाल अंकल उन्हें भड़काते हैं।
लालू - भैया , ये तो तुम्हारा आतंरिक मामला है तुम्ही निपटो। ऐसे सभा सोसाइटी में समधी जी की टोपी मत उछालो।
अखिलेश - अरे नहीं लालू अंकल , हम तो बस ये अनुरोध लेकर आये हैं , की  आप सब मिलकर उनको राष्ट्रपति का कैंडिडेट बना दो , तो हमारी जान छूट जाये।
सोनिया - इम्पॉसिबल ! मुलायम वाज  वैरी हार्ड ऑन  राहुल। उसने कांग्रेस के  बारे भी  ग़लत बोलै।

( सीताराम येचुरी का प्रवेश )

सीताराम - कम्युनिस्ट पार्टी का कैंडिडेट बनूँगा मैं। कम्युनिस्ट पार्टी ने कभी कोई पद नहीं माँगा।  बल्कि ज्योति बाबू को प्रधानमन्त्री  बनने से भी रोका।  हमेशा आप लोगों का साथ दिया।  हमारा पोलितब्यूरो ने फैसला किया है ,  कि देश का राष्ट्रपति मुझे बनाया जाय।

(अचानक ममता का प्रवेश )

ममता - अच्छा अब गुण्डो की पार्टी को भी राष्ट्रपति बनना है।  तुमलोगों ने पश्चिम बंगाल को बरबाद कर दिया , अब क्या हिंदुस्तान को बर्बाद करोगे।

(मायावती का प्रवेश )

मायावती - कभी तो दलितों की महिला को भी चांस दो ! मैंने फैसला किया है,  कि अब मैं यूपी की चुनावी राजनीति से सन्यास ले लूँ।
अखिलेश - अरे बुआ , सन्यास तो तुम्हे मोदी जी ने दिला दिया। तुम अपने  भतीजे को गलियाती रह गयी , वो हम दोनों की बजा के चला गया।

तभी सम्बित पात्रा का प्रवेश -

संबित - मुझे मोदीजी ने एक सन्देश देकर भेजा है , की इस बार हमलोग एक नयी मिसाल पेश करेंगे।  हमलोग इस बार किसी विरोधी पार्टी के किसी समझदार वरिष्ठ  नेता को राष्ट्रपति  उम्मीदवार बनाएंगे।  अगर आप लोगों ने कोई उम्मीदवार चुन लिया हो तो उन्हें खबर कर देना।

ऐसा सुनते ही सारे नेता भाग लिए सभा से।  अपनी चिर परिचित कुटिल मुस्कान के साथ संबित्त भी वहां से निकल लिए।
                                          
इति विपक्ष एकता प्रकरणम

रविवार, 1 जनवरी 2017

Happy New Year India !



सोलह का साल बड़ा बेमिसाल था
रोज हो रहा कुछ न कुछ कमाल था !

म से जुड़े लोग - बड़े शोर में रहे
मोदी , ममता , माया, मुलायम जोर में रहे
महबूबा बन सकी न किसी की भी महबूबा
इतना उसके दिल में हर पल मलाल था


अ से बने नाम थे बस दाल दल रहे
अखिलेश, अमित, अमर सिंह चाल चल रहे
अरविन्द जंग छेड़ते रहे यूँ रोज जंग से
दिल्ली को छोड़ दूर  छाने का ख़याल था


नोट बंद हो गए पांच सौ हजार के
लाले पड़े जनता के  खर्चों के जुगाड़ के
बेईमान है चिल्ला रहे , ईमानदार खुश
मोदी ने लिया देशहित निर्णय विशाल था


संसद का समय मूर्खता की भेंट चढ़ गया
संसद का सत्र बिन बहस आगे को बढ़ गया
इस खेंच तान में ये साल ख़त्म हो गया
नुकसान हुआ देश का , किस को मलाल था