Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 30 दिसंबर 2017

हे नचिकेता !



कठोपनिषद कहता है -
पिता द्वारा क्रोध में शापित होकर
निकल पड़ा नचिकेता
मृत्यु की खोज में
भटकता रहा भटकता रहा
किन्तु उसे मृत्यु कहीं नहीं मिली !
आश्चर्य है
सब जगह ढूँढा -
मुंबई क्यों नहीं आया !

नचिकेता !
यहाँ तुम मृत्यु को नहीं ढूंढते
बल्कि मृत्यु तुमको ढूंढती
जहाँ जाओ वहां मिलती मृत्यु
सड़कों पर खुले गटर के रूप में
रेलवे स्टेशनों पर संकीर्ण सीढ़ियों के रूप में
फुटपाथ पर लगे पेड़ों के नीचे
पुराने मकानों के ढहने में
बरसात में सब कुछ के बहने में
बीच पर समुद्र के उफान में
और जो मृत्यु तुम्हे नहीं मिली ब्रह्माण्ड में
वो तो तुम्हे भोजन के समय मिलेगी
कमला मिल जैसे अग्निकांड में
इसलिए आज के युग के नचिकेता
भाग जाओ यहाँ से
गाँव में पिता का क्रोध अच्छा है
मुंबई की असमय मौत के क्रोध से

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