मैंने यहाँ खुला रख छोड़ा है , अपने मन का दरवाजा! जो कुछ मन में होता है , सब लिख डालता हूँ शब्दों में , जो बन जाती है कविता! मुझे जानना हो तो पढ़िए मेरी कवितायेँ !
Mahendra Arya
The Poet
सोमवार, 17 जुलाई 2017
थकन
थक गया है आदमी इक खोज से मर रहा क्यूँ ख्वाहिशों के बोझ से
तब से भागा फिर रहा हर रोज ये चल पड़ा था पैर से जिस रोज से
जिंदगी की मौज पाने के लिए भिड़ रहा हर सू दुखों की मौज से
चाहते हैं अमन की सुकून की लड़ रहा है नफरतों की फ़ौज से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें