Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 17 जुलाई 2017

थकन



थक गया है आदमी इक खोज से
मर रहा क्यूँ ख्वाहिशों के बोझ से

तब से भागा फिर रहा हर रोज ये
चल पड़ा था पैर से जिस रोज से

जिंदगी की मौज  पाने के लिए
भिड़  रहा हर सू दुखों की मौज से

चाहते हैं अमन की सुकून  की
लड़ रहा है नफरतों की फ़ौज से
                        

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