Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 19 सितंबर 2010

लफंग बन गए हैं दबंग आजकल

सीमा पे अमन देश में है जंग आजकल
घुसपैठिये बना रहे सुरंग आजकल

ऊंचाइयों पे उड़ने का हम ख्वाब देखते
अपने ही अपनी काटते पतंग आजकल

बाहर के दुश्मनों से हम चाहे निपट  भी लें
अपने ही गिरेबान में भुजंग आजकल

जितने गदर्भ देश में , ओहदों पे मस्त है
धोबी के घाट पर खड़े तुरंग आजकल

संस्कार ख़त्म हो चले , अधिकार बच गए
अच्छे नहीं समाज के रंग-ढंग आजकल

छिछोरे - युवा पीढ़ी के आदर्श बन गए
लफंग बन गए हैं दबंग आजकल

शब्दार्थ
[ गदर्भ = गधा / तुरंग = घोडा ]

4 टिप्‍पणियां:

  1. बाहर के दुश्मनों से हम चाहे निपट लें
    अपने ही गिरेबान में भुजंग आजकल

    अच्छी पंक्तिया ........

    इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
    (आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??)
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html

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  2. बहुत सुन्दर|
    बदलते परिवेश पर करारी चोट कर गई आपकी यह ग़ज़ल|
    ब्रह्माण्ड

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  3. जितने गदर्भ देश में , ओहदों पे मस्त है
    धोबी के घाट पर खड़े तुरंग आजकल

    संस्कार ख़त्म हो चले , अधिकार बच गए
    अच्छे नहीं समाज के रंग-ढंग आजकल

    छिछोरे - युवा पीढ़ी के आदर्श बन गए
    लफंग बन गए हैं दबंग आजकल

    वाह, लाजबाब !

    जवाब देंहटाएं
  4. फिगर जीरो बना कर हड्डियाँ दिखाना,
    फैशन में बाबा मलंग है आजकल !

    बढ़िया व्यंग्य रचना ..

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