मेरी कविताओं की डायरी में
एक पन्ना खाली है
उस पन्ने पर लिखी है
मेरे जीवन की सबसे उम्दा ग़जल
जिसे तुम नहीं पढ़ पाओगे
क्योंकि वो लिखी नहीं गयी
रोशनाई से
क्योंकि वो लिखी नहीं गयी
हर्फों में
क्योंकि वो लिखी नहीं गयी
हिंदी या उर्दू में
वो लिखी गयी थी
दर्द की कलम से
वो लिखी गयी थी
आंसुओं की सियाही से
वो लिखी गयी थी
रात के अँधेरे से
लेकिन तुम्हे वो दिखाई नहीं देगी
क्योंकि उस ग़जल के हर्फ़
पढ़े नहीं
महसूस किये जाते हैं ;
मेरी सबसे उम्दा ग़जल
सिर्फ मेरे लिए है दोस्त
जिसे मैं अक्सर पढता हूँ
महेंद्र जी कमाल है आपकी लेखनी का , गहरी इतनी की अंतस तक पंहुच जाती है आज आपकी कविता पढ़ कर आखें भर आई , आज तक की मेरे द्वारा पढ़ी गयी सबसे उम्दा कविता है इसे मैं अपनी डायरी में अभी नोट कर लेती हूँ
जवाब देंहटाएंअब तो पक्का यकीं हो गया की आप मेरे भाई ही है मैंने भी इक बार अपने मित्रों के बीच कहा था की मैं जो किताब लिखुगी वो आसुओं से लिखी जाएगी और उसे कोई नहीं पढ़ पायेगा सिवाय उन लोगों के जो आसुओं की भाषा समझते हैं और सारी दुनिया को वो किताब कोरी नजर आएगी लेकिन पढ़ने वाले पढ़ लेगें ----------खैर
आपकी कविता इतनी गहरी है की उस पर टिपण्णी शब्दों से नहीं की जा सकती सिर्फ आसुओं से ही की जा सकती है शब्द सीमित है वो भावों को ज्यों का त्यों व्यक्त नहीं कर सकते इक गजल भेज रही हूँ सुनियेगा
मैं भूल जाऊं तुझे अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूं
की तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई खाब नहीं
यहाँ तो दिल का आलम है की क्या कहूँ ???
की ये भुला ना सका वो सिलसिला जो
था ही नहीं
वो इक ख्याल जो आवाज तक गया ही नहीं
वो इक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो इक लगाव जो हममे कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुझे किस तरह भूलूं ??
आपने ये जान लिया की ये कविता मुझे पसंद आयेगी इस बात का शुक्रिया , इतनी पसंद आई की इक भी शब्द नहीं मेरे पास की मैं कमेन्ट कर सकूँ -ममता
महेंद्र जी कमाल है आपकी लेखनी का , गहरी इतनी की अंतस तक पंहुच जाती है आज आपकी कविता पढ़ कर आखें भर आई , आज तक की मेरे द्वारा पढ़ी गयी सबसे उम्दा कविता है इसे मैं अपनी डायरी में अभी नोट कर लेती हूँ
जवाब देंहटाएंअब तो पक्का यकीं हो गया की आप मेरे भाई ही है मैंने भी इक बार अपने मित्रों के बीच कहा था की मैं जो किताब लिखुगी वो आसुओं से लिखी जाएगी और उसे कोई नहीं पढ़ पायेगा सिवाय उन लोगों के जो आसुओं की भाषा समझते हैं और सारी दुनिया को वो किताब कोरी नजर आएगी लेकिन पढ़ने वाले पढ़ लेगें ----------खैर
आपकी कविता इतनी गहरी है की उस पर टिपण्णी शब्दों से नहीं की जा सकती सिर्फ आसुओं से ही की जा सकती है शब्द सीमित है वो भावों को ज्यों का त्यों व्यक्त नहीं कर सकते इक गजल भेज रही हूँ सुनियेगा
मैं भूल जाऊं तुझे अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूं
की तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई खाब नहीं
यहाँ तो दिल का आलम है की क्या कहूँ ???
की ये भुला ना सका वो सिलसिला जो
था ही नहीं
वो इक ख्याल जो आवाज तक गया ही नहीं
वो इक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो इक लगाव जो हममे कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुझे किस तरह भूलूं ??
आपने ये जान लिया की ये कविता मुझे पसंद आयेगी इस बात का शुक्रिया , इतनी पसंद आई की इक भी शब्द नहीं मेरे पास की मैं कमेन्ट कर सकूँ -ममता
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
प्रिय महेंद्र!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी यह कविता मिझे वो ग़ज़ल याद दिलाती है -
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है ......
दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आतीं हैं
शाम पड़े इस सूने घर में मेला लगता है
किसको कैसर पत्थर मारूं कौन पराया है
शीश महल में इक-इक चेहरा अपना लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है.
Shashi
हाँ शशि ,
जवाब देंहटाएंउदासी भी जिंदगी का एक रूप है , जिसे कविता अपने शब्दों में ऐसे उतार सकती है जैसे कोई चित्र .
महेंद्र
ममता ! मेरी रचनाओं और मेरे ब्लॉग को चार चाँद लग जाते हैं जब इतनी उत्कृष्ट प्रतिक्रियाएं मिलती हैं . बहुत धन्यवाद पधारने का , पढने का और पढ़े हुए में आत्मसात हो जाने का .
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