सीमा पे अमन देश में है जंग आजकल
घुसपैठिये बना रहे सुरंग आजकल
ऊंचाइयों पे उड़ने का हम ख्वाब देखते
अपने ही अपनी काटते पतंग आजकल
बाहर के दुश्मनों से हम चाहे निपट भी लें
अपने ही गिरेबान में भुजंग आजकल
जितने गदर्भ देश में , ओहदों पे मस्त है
धोबी के घाट पर खड़े तुरंग आजकल
संस्कार ख़त्म हो चले , अधिकार बच गए
अच्छे नहीं समाज के रंग-ढंग आजकल
छिछोरे - युवा पीढ़ी के आदर्श बन गए
लफंग बन गए हैं दबंग आजकल
शब्दार्थ
[ गदर्भ = गधा / तुरंग = घोडा ]
बाहर के दुश्मनों से हम चाहे निपट लें
जवाब देंहटाएंअपने ही गिरेबान में भुजंग आजकल
अच्छी पंक्तिया ........
इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
(आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html
बहुत सुन्दर|
जवाब देंहटाएंबदलते परिवेश पर करारी चोट कर गई आपकी यह ग़ज़ल|
ब्रह्माण्ड
जितने गदर्भ देश में , ओहदों पे मस्त है
जवाब देंहटाएंधोबी के घाट पर खड़े तुरंग आजकल
संस्कार ख़त्म हो चले , अधिकार बच गए
अच्छे नहीं समाज के रंग-ढंग आजकल
छिछोरे - युवा पीढ़ी के आदर्श बन गए
लफंग बन गए हैं दबंग आजकल
वाह, लाजबाब !
फिगर जीरो बना कर हड्डियाँ दिखाना,
जवाब देंहटाएंफैशन में बाबा मलंग है आजकल !
बढ़िया व्यंग्य रचना ..