Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 11 सितंबर 2010

अंतर की ग्रंथियों को खोलो कभी कभी

[ जैन समाज में एक बहुत अच्छी प्रथा है . वर्ष में एक दिन सभी एक दुसरे स मिल कर हाथ जोड़ कर कहते हैं - " मिच्छामी दुक्कड़म " . इस का अर्थ होता है की इस पूरे वर्ष में मेरे किसी भी कार्य या वचन से जाने या अनजाने रूप से आपका दिल दुख हो तो मुझे क्षमा करें . इसी भावना पर आधारित है मेरी ये नयी ग़जल .]



मन को उलट पलट के टटोलो कभी कभी
अंतर की ग्रंथियों को खोलो कभी कभी

कुछ घाव छोटे छोटे नासूर बन न जाये
मरहम लगाके प्यार की धो लो कभी कभी

बातों पे खाक डालो जो चुभ गयी थी दिल में
कुछ जायका बदल के बोलो कभी कभी

कुछ अपने गिरेबां में भी झांक कर देखो
और अपनी गलतियों को तोलो कभी कभी

मन भर ही जाए जो गर अंतर की वेदना से
कहीं बैठ कर अकेले रो लो कभी कभी

6 टिप्‍पणियां:

  1. आप अपने से ऐसी क्या नाराजगी,
    जो हो, वो भी तो , हो लो कभी कभी ..
    उम्दा शब्द चयन, बिलकुल पानी की धार की तरह बह रही है आपकी ग़ज़ल ...

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  2. मन को उलट पलट के टटोलो कभी कभी
    अंतर की ग्रंथियों को खोलो कभी कभी

    बहुत बढ़िया रचना भाव महेंद्र जी ....बधाई.

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  3. महेन्द्र जी आपकी ये ग़ज़ल सादगी के अंदाज में ताना मारती है....... और साथ ही कभी अनुरोध और विनती भी करती है तो कभी सांत्‍वना के स्‍वर भी। आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं। अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  4. प्रिय महेंद्र!
    जिस परिपेक्ष्य में इसे लिखा गया है, उसमे और अन्यथा भी भावों की अभिव्यक्ति सटीक है.
    वैसे जैनियों की इस प्रथा को "क्षमापना" के नाम से जाना जाता है.

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  5. toooo gooood.........
    accept my applogies too..

    Man Chanchal he.
    jigh AGNI he.
    Per Dil mera saaf he.
    bhule se abhi kadve bool bole ho,
    toh,,,
    Shamapana....

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  6. वाह वाह वाह....क्या बात कह दी है आपने...
    एक नया शब्द ,नयी परंपरा जानने को तो मिली ही बोनस में इतनी सुन्दर रचना भी मिली ...दिल बाग़ बाग़ हो गया..
    हर शेर जीवन में उतारने लायक कही है आपने...

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