tag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post5057625416271190235..comments2023-10-07T13:29:02.173+05:30Comments on Mahendra's Blog (मेरी हिंदी कवितायेँ ): अंतर की ग्रंथियों को खोलो कभी कभीMahendra Arya's Hindi Poetryhttp://www.blogger.com/profile/02932120575765684553noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-79298636589328824392010-09-13T18:55:50.031+05:302010-09-13T18:55:50.031+05:30वाह वाह वाह....क्या बात कह दी है आपने...
एक नया शब...वाह वाह वाह....क्या बात कह दी है आपने...<br />एक नया शब्द ,नयी परंपरा जानने को तो मिली ही बोनस में इतनी सुन्दर रचना भी मिली ...दिल बाग़ बाग़ हो गया..<br />हर शेर जीवन में उतारने लायक कही है आपने...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-33428663943683078552010-09-13T13:48:13.853+05:302010-09-13T13:48:13.853+05:30toooo gooood.........
accept my applogies too..
M...toooo gooood.........<br />accept my applogies too..<br /><br />Man Chanchal he.<br />jigh AGNI he.<br />Per Dil mera saaf he.<br />bhule se abhi kadve bool bole ho,<br />toh,,,<br />Shamapana....Saritanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-91158101186322680572010-09-13T13:46:43.412+05:302010-09-13T13:46:43.412+05:30प्रिय महेंद्र!
जिस परिपेक्ष्य में इसे लिखा गया है,...प्रिय महेंद्र!<br />जिस परिपेक्ष्य में इसे लिखा गया है, उसमे और अन्यथा भी भावों की अभिव्यक्ति सटीक है.<br />वैसे जैनियों की इस प्रथा को "क्षमापना" के नाम से जाना जाता है.Shashi Mimaninoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-34456013443055724682010-09-12T09:10:22.278+05:302010-09-12T09:10:22.278+05:30महेन्द्र जी आपकी ये ग़ज़ल सादगी के अंदाज में ताना ...महेन्द्र जी आपकी ये ग़ज़ल सादगी के अंदाज में ताना मारती है....... और साथ ही कभी अनुरोध और विनती भी करती है तो कभी सांत्वना के स्वर भी। आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं। अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।<br /><br />बहुत अच्छी प्रस्तुति। <br /><br /><b>हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है। </b><br /><br /><a href="http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/09/3.html" rel="nofollow"> देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें</a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-17090105212787056432010-09-11T20:28:14.696+05:302010-09-11T20:28:14.696+05:30मन को उलट पलट के टटोलो कभी कभी
अंतर की ग्रंथियों ...मन को उलट पलट के टटोलो कभी कभी <br />अंतर की ग्रंथियों को खोलो कभी कभी <br /><br />बहुत बढ़िया रचना भाव महेंद्र जी ....बधाई.समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-570573753792296226.post-38153388611365609052010-09-11T20:16:42.258+05:302010-09-11T20:16:42.258+05:30आप अपने से ऐसी क्या नाराजगी,
जो हो, वो भी तो , हो ...आप अपने से ऐसी क्या नाराजगी,<br />जो हो, वो भी तो , हो लो कभी कभी ..<br />उम्दा शब्द चयन, बिलकुल पानी की धार की तरह बह रही है आपकी ग़ज़ल ...Majaalhttps://www.blogger.com/profile/08748183678189221145noreply@blogger.com