कितनी अशांति बिखरी है ,यूँ जग जीवन में 
जैसे कोई धुआं फैले एक उपवन में 
उपवन में हम खुशबू लेने को आये थे 
कुछ अपना इस उपवन को देने आये थे 
क्यूं फर्क आ गया लेने देने का मन में 
हमने कुछ ताज़ा फूल यहाँ से तोड़े भी 
उन फूलों के गुलदस्ते हमने जोड़े भी 
फिर 'और अधिक' के कांटे बींध गए तन में 
सूखे पत्तों को हमने आग दिखा डाली 
फूलों की खुशबू  में दुर्गन्ध मिला डाली 
ऐसे अशांति फैला डाली इस बगियन में
 
 
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