Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 17 मई 2025

न्यू नॉर्मल



रोज़ की तरह आज फिर सुबह तुम
बाथरूम के कमोड पर बैठकर
यू ट्यूब पर देख रहें हो
रात को कहाँ कहाँ पर धमाके हुये!

युद्घ काल में इतनी बेफिक्री
तुम्हे कोई डर नहीं
कोई धमाका तुम्हारे घर भी तो हो सकता था
लेकिन तुम्हें विश्वास है
ऐसा कुछ होगा नहीं!

और उस विश्वास का कारण?
तुम कहोगे
हमारी शूर वीर सेना
बिलकुल सही है
लेकिन सेना तो पहले भी थी!
ऐसा आत्मविश्वास कहाँ था?
कब किया किसी आतंकवाद पर
ऐसा घोर प्रतिकार
बहाना था -
उनके पास परमाणु हथियार है
और थी बडी बडी दर्शन की बातें
'युद्ध किसी समस्या का हल नहीं '
'कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे
तो दूसरा आगे कर दो '

हमने कायरता की घुट्टी पी थी
और बहादुरी से छुट्टी ली थीं
हमें सैनिकों का पत्थर खाना मंजूर था
सैनिकों के कटे हुये सर आना मंजूर था
हमारा खून नहीं खौलता था
हमारा रक्षा मंत्री कुछ नहीं बोलता था

ये था सेना का मनोबल
मार खाते रहो लेकिन उफ्फ ना करो
बचे इसलिए रहे
क्योंकि सेना का मनोबल गिरा था
चरित्र नहीं
चरित्र भ्रष्ट था उनका
जो सेना के लिये हथियार खरीदते थे
हर रक्षा सौदे में मोटी दलाली
चाहे तोप हो या हेलिकाप्टर
या फिर सियाचिन की सर्दी से लड़ने के
जूते और कपड़े!
बिचौलिए ही निर्णायक थे कि
सेना के लिये क्या लेना है!
इसमे सेना का क्या लेना देना है!

देश बदला
जब एक शेर आया
जिसने देश का दर्शन बदला
ना खाऊंगा ना खाने दूँगा
देश के हथियार देश मे बनेंगे
सेना को सारा प्रोत्साहन
हर रूप से मिलेगा

जब सारा देश सुख से
अपने घर पर दिवाली मनाता है
वो पिछले दस सालों से
सीमा पर मनाता है
देश के सिपाही के लिये मिठाई ले जाता है
और ले जाता है पिता तुल्य स्नेह
और थपथपाकर उसकी पीठ
कहता है
तुम अकेले नहीं मेरे दोस्त!

आज विश्व देख रहा है
इस बदले हुये भारत के तेवर
हम युद्ध नहीं चाहते
लेकिन आतंकवाद भी नहीं होने देंगे
आतंकवाद तुम्हारी तरफ से
युद्ध की घोषणा होगी
तुम्हारी गोली का ज़वाब होगा
हमारा गोला!
उसने हाथ खोल दिये सेना के
हर हमला तुम्हारा निर्णय होगा

सहम गया है विश्व
क्या अमरीका क्या चीन
ये हुंकार सुनकर -
परमाणु हथियार की
गीदड़ भभकी नहीं चलेगी!

वो बैठा है -
इसीलिए तुम्हारे लिये
युद्ध - कोई युद्ध नहीं है
एक आई पी एल का खेल है!
धन्यवाद करो ईश्वर का
ऐसा एक चौकीदार इस देश को देने के लिये!




जय हिन्द! जय हिन्द की सेना!
जय हमारा लाडला चौकीदार!

जिन्ना



जब आज़ादी आनी थी 

और गुलामी जानी थी

खुली हवा में जीने की थी एक कल्पना 

और धुयें की काली चादर ढ़ह जानी थी


ऐसे में तुमने क्यों ऐसा  काम किया 

अपनी ख़ातिर मुल्क अलहदा माँग लिया 

तुम्हें लगा हिन्दू शासन के नीचे 

नहीं तुम्हारी एक चलेगी 

तेरे अंदर की ख्वाहिश की 

नहीं दाल  गलेगी !


तुम तब थे कहाँ जब भगत सिंह ने खाई फांसी 

और आजाद ने प्राण दिये थे लड़ते लड़ते 

बिस्मिल ने फांसी का फंदा चूमा था जब 

अशफ़ाक ने उसका साथ दिया था मरने तक 


अशफ़ाक ने नहीं  माँगा था कोई दाम खून का 

आज़ादी की ख़ातिर मर जाने के जुनून का 

तुम लगे भुनाने नाम उसी का लेकर 

 उसकी क़ुरबानी की दुहाई देकर!


इतना ही अलगाव पसंद था तुमको जिन्ना 

तुम भी अपनी फौज बना सकते थे जिन्ना 

जैसे सुभाष ने एक बनाई अपनी सेना 

आजाद हिंद कहलाई थी वो उसकी सेना 


लेकिन तुम थे मौकापरस्त बस एक जुआरी  

चाटुकार थे अँग्रेजों के भीतर थी मक्कारी 

आज़ादी की नव बिसात पर फन फैलाये 

उगल रहे थे वमन ग़रल मजहब का हाए 


अपनी खातिर इक नया मुल्क तुम माँग रहे थे 

और हमारे नेता गण भी ढूँढ़ रहे थे 

एक समझौता जो  तेरे मन को भा जाये 

कुछ तेरी कुछ उनकी भी बात  बन जाये 


और खींच दी खून की मिलकर चंद लकीरें 

और नयी फिर पहना दी तुमने जंजीरें 

खून बहा दोनों मुल्कों में पागलपन का 

एक रात में भाई भाई का दुश्मन था 


कभी सोचता  काश नहीं तुम ऐसा करते 

इतने सारे लोग यहाँ पर कभी ना मरते 

फिर लगता है सही हुआ जो कुछ भी हुआ था 

तुम जैसे इस देश मे रहते वो भी बुरा था 


अब भी तुम जैसे हैं कुछ कुछ साँप यहाँ पर 

तुमको कहते हैँ ये सब अपना बाप यहाँ पर 

लेकिन अब युग आया है तेरे जानें का 

तेरी जहरीली सोच का यहाँ मर जाने का

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

तुम कौन हो ?


 तुम कौन हो ?

 

तुम साधु हो या संत हो

तुम आदि हो या अंत हो

तुम देश हो परदेस हो

तुम शांत , अग्निवेश हो

 

तुम कौन हो ?

 

तुम शत्रुओं का काल हो

पापी को महाकाल हो

तुम सरल हो तुम जटिल हो

डरता है वो जो कुटिल हो

 

तुम कौन हो ?

 

भारत के तुम सरदार हो

पर इतने असरदार हो

है विश्व तुमको जानता

और गुरु तुमको मानता

 

तुम कौन हो ?

 

इंसान हो या देव हो

परमात्मा स्वयमेव हो

हिंदुत्व की पहचान हो

मानवता का सन्मान हो

 

तुम कौन हो ?

 

तुम युद्ध में क्या मुखर हो !

तुम अग्नि हो तुम प्रखर हो

पर शांति में तुम शांत हो

गंभीर तुम प्रशांत हो

 

तुम कौन हो !

 

जब देश गणना में लगा

भविष्य बुनने में लगा

चुपचाप उठ कर चल दिए

बस आत्म चिंतन के लिए

 

तुम कौन हो !

 

विष गरल पीकर मौन हो

है देश तुमसे पूछता

तुम कौन हो ?

तुम कौन हो ?

 जले भुने कुछ लोग

 

 


देश मनाता खुशियां है जब , जले भुने कुछ लोग

अपना ह्रदय जलाते हैं , कुछ गिने चुने से लोग

 

पर्व मनाते चंद्रयान के, सफल चन्द्र आरोहण का 

सर धुनते रहते हैं तब भी , धुनें धुनें कुछ लोग

 

जीवन भर कुछ कर ना पाए , बनते हैं नेता वो

करने वाले को कोसे कुछ , सुने सुने से लोग

 

देश विरोधी बातें करते  , बुद्धि के दुश्मन ये

चुन चुन कर गाली देते ये , चुने चुने कुछ लोग

 

देश बपौती मान के चलता  , एक  शाही परिवार

सर पर उन्हें चढ़ाते रहते , दरबारी कुछ लोग

विश्व की बेटी

 विश्व की बेटी

 


कल्पना कीजिये ,

आप अपने शहर से दूर किसी बियाबान में गए हों

और रास्ता भूल गए हों

जहाँ कोई वापसी का साधन नहीं हो

कोई मित्र  नहीं हो

परिवार नहीं हो

याद आती रहे जहाँ अपने बच्चों की

अपने घर की , आँगन की

 

 

चारों तरफ अँधेरा

और सन्नाटा

कोई चहचहाहट नहीं परिंदों की

कोई गुनगुनाहट नहीं झींगुर की

ना कोई जुगनू ही उड़ रहा हो जहाँ

कोई खड़खड़ाहट नहीं हो पत्तों की

कितना समय गुजार  सकते हैं आप

ऐसे एक मकान में

जो बना हो बियाबान में

कुछ घंटे , या फिर एक दिन

शायद २ - ४ दिन

और फिर कहेंगे -

हे भगवन मुझे तो मौत ही दे दे !

 

अब कल्पना कीजिये सुनीता विलियम की

जो अपने ग्रह यानि पृथ्वी से दूर

कहीं शून्य में थी करीब १२  करोड़ मील दूर

पूरे नौ महीनों तक

नितांत अंधकार

शून्य में विचरण

सन्नाटे में जीवन

जैसे एक गर्भस्थ शिशु अपनी माँ की कोख में

विचरता है

क्या  संभव है

मानवीय सहन शक्ति की और अधिक कड़ी परीक्षा

 

सुनीता तुम पराकाष्ठा हो

एक नारी की सहन शक्ति की

उसकी आस्था की

उसकी भक्ति की

जीवन को दांव पर लगाकर

विज्ञान की खोज का तुम्हारा दीवानापन

सबके अंदर पैदा कर गया एक अपनापन

सारे विश्व की तुम बेटी हो

सारा विश्व तुम्हे प्रणाम करता है

चंद्र यान ३

 चंद्र यान

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इसरो,

क्या खूब बनाया तुमने

ये चंद्र यान

जो पहुंचा

इस धरती माँ की गोद से निकल

अढाई लाख मीलों का सफर तय कर के

अपनी ननिहाल

और सवार हो गया कंधो पर

अपने चंदा मामा के

धरती हो गयी निहाल

ना जाने क्या क्या लायेगा

ननिहाल से

कैसे कैसे उपहार

जो भला करेंगे पूरी मानवता का

हम करते बाँहें पसारे इंतेजार

वो जन्मदाता इस यान के

कुछ साधारण से लगने वाले

असाधारण भारतीय

अथक प्रयास

और लक्ष्य पर विश्वास

बस यही मूल मंत्र

था खास

और था ईश्वर पर विश्वास!

प्रणाम ऐसे वैज्ञानिकों को

जिन्होंने हमें कराया

अपनी शक्ति का आभाष!