विश्व की बेटी
कल्पना कीजिये ,
आप अपने शहर से दूर किसी बियाबान में
गए हों
और रास्ता भूल गए हों
जहाँ कोई वापसी का साधन नहीं हो
कोई मित्र नहीं हो
परिवार नहीं हो
याद आती रहे जहाँ अपने बच्चों की
अपने घर की , आँगन की
चारों तरफ अँधेरा
और सन्नाटा
कोई चहचहाहट नहीं परिंदों की
कोई गुनगुनाहट नहीं झींगुर की
ना कोई जुगनू ही उड़ रहा हो जहाँ
कोई खड़खड़ाहट नहीं हो पत्तों की
कितना समय गुजार सकते हैं आप
ऐसे एक मकान में
जो बना हो बियाबान में
कुछ घंटे , या फिर एक दिन
शायद २ - ४ दिन
और फिर कहेंगे -
हे भगवन मुझे तो मौत ही दे दे !
अब कल्पना कीजिये सुनीता विलियम की
जो अपने ग्रह यानि पृथ्वी से दूर
कहीं शून्य में थी करीब १२ करोड़ मील दूर
पूरे नौ महीनों तक
नितांत अंधकार
शून्य में विचरण
सन्नाटे में जीवन
जैसे एक गर्भस्थ शिशु अपनी माँ की कोख
में
विचरता है
क्या
संभव है
मानवीय सहन शक्ति की और अधिक कड़ी
परीक्षा
सुनीता तुम पराकाष्ठा हो
एक नारी की सहन शक्ति की
उसकी आस्था की
उसकी भक्ति की
जीवन को दांव पर लगाकर
विज्ञान की खोज का तुम्हारा दीवानापन
सबके अंदर पैदा कर गया एक अपनापन
सारे विश्व की तुम बेटी हो
सारा विश्व तुम्हे प्रणाम करता है
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