Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

अर्थशास्त्र

देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने कहा -
पैसे पेड़ों पर नहीं लगते
कमाल का अर्थशास्त्र बताया
तो  फिर कहाँ लगते हैं, प्रधानमंत्रीजी ?

इतना ज्ञान था आपके पास
क्यों नहीं बांटा आपने
पैसे कहाँ लगते हैं
पैसे कहाँ से आते हैं
कहाँ पर जाते हैं
इन सब का ज्ञान और कौन दे सकता है , गुरुवर !

क्यों नहीं दिया आपने उदाहरण
आपके अपने ऐ राजा  का
जो पारंगत था पैसे हवा में से बनाने का
आखिर 2 जी था क्या
चंद  तरंगों का सौदा  जो हवा में बहती हैं

क्यों नहीं दिया आपने
आदरणीय कलमाड़ी जी की खेल भावना का उदाहरण
जिन्होंने हमें सिखाया की पैसे तो खेल खेल में ही बनते हैं

और अधिक पीछे क्यों जाएँ
आप अपना ही उदाहरण  दे लेते
जमीन के नीचे  फालतू पड़ा कोयला
किसके काम का था
आपने तो फालतू सामान से पैसा बनाने की विधि सिखाई देश को
और कितने मंत्री तर गए

और अब आम आदमी को भी सिखा रहें हैं
आप अर्थशास्त्र
गैस कम जलाओ और पैसा बचाओ
गैस कम जलाओगे तो खाना भी कम बनाओगे
खाने में भी पैसा बचा
कम बनाओगे तो कम खाओगे
कम खाओगे तो शरीर स्वस्थ रहेगा

और आपने क्या नहीं दिया इस देश को
एक  वालमार्ट की कमी  थी ,
सो आपने वो भी पूरी कर दी श्रीमान
बनिए का आटा , ग्वाले का दूध
कुंजड़े की ककड़ी और पड़ोस की बुढिया का पापड़
खा खा कर उकता गए थे
अब जायेंगे चकाचक शो रूम में ,
और ढूंढेंगे की आटा  कौन से माले पर है
और ककड़ी कौन से माले पर
और कड़क पैकेटों में आटा खरीद कर
हम निहाल हो जायेंगे
बनिए, ग्वाले, कुंजड़े और बुढिया से हमें क्या
हम तो अमरीकियों जैसे बन जायेंगे न ?

क्या दूर दृष्टी  है आपकी
किसान के तो मौज कर दी आपने
मनमाना पैसा पायेंगे
अगर वालमार्ट जैसा
एक नाप और एक रंग का फल उगायेंगे
मानो किसी प्लास्टिक की फैक्ट्री में बने हो 
काले दाग  वाले केले ,
पिलपिले हो रहे आम
और रस से फटे जा रहे सीताफल की जगह नहीं होगी
फाइव स्टार शो रूम में 
ऐसे फल देखने में कितने बदसूरत लगते  हैं न !

मान्यवर !
आपने एक और सुधार किया पुरानी  एक भूल का
जो हमारे भूत पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने की थी
कितना गलत नारा दिया था उन्होंने
- जय किसान
किसान किस काम का इस देश में
क्या पेड़ों पर पैसे लगते हैं ?

महामहिम !
आपका अर्थशास्त्र महान है
भूखे नंगों के लिए होगा अनर्थ शास्त्र
जेब में पैसे हों तो फिर अर्थ ही अर्थ है !


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