जिंदगी कुछ यूँ गुजरती दिन ब दिन
पेड़ से पत्ती बिखरती दिन ब दिन
सुख के पल तो टूट जाते स्वप्न से
दुःख का बढ़ता बोझ रहता दिन ब दिन
रहगुजर में मीत मिलते हैं कभी
लोग अनजाने गुजरते दिन ब दिन
भागती रहती ख़ुशी की खोज में
जिंदगी जीने की खातिर दिन ब दिन
मन कभी बूढा नहीं होता मगर
तन बुढ़ापा ओढ़ता है दिन ब दिन
मौत से हम दूर जितना भागते
मौत उतनी पास आती दिन ब दिन
पेड़ से पत्ती बिखरती दिन ब दिन
सुख के पल तो टूट जाते स्वप्न से
दुःख का बढ़ता बोझ रहता दिन ब दिन
रहगुजर में मीत मिलते हैं कभी
लोग अनजाने गुजरते दिन ब दिन
भागती रहती ख़ुशी की खोज में
जिंदगी जीने की खातिर दिन ब दिन
मन कभी बूढा नहीं होता मगर
तन बुढ़ापा ओढ़ता है दिन ब दिन
मौत से हम दूर जितना भागते
मौत उतनी पास आती दिन ब दिन
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