बचपन में देखा था
कोयला काला होता है
जिससे घर की अंगीठी सुलगती है
जिस पर माँ फुल्के बनाती है
जब बड़ा हुआ तो देखा
कोयला कारखानों में भी लगता है
बड़ी बड़ी भट्टियों में इसे जलाते हैं
लोहे को गरम करने के लिए
इस कोयले से भी चूल्हा जलता है
उन मजदूरों के घर का
जो खुद को जलाते हैं कोयले के साथ
लेकिन अब जो देखा
वो सब विचित्र है
ये कोयला अधिक काला नहीं
इससे अधिक काली है करतूतें
इस देश के कर्णधारों की
कोयला सिर्फ चूल्हा ही नहीं जलाता
कोयला सिर्फ भट्टियाँ ही नहीं सुलगाता
कोयला सुलगाता है संसद को भी
संसद बन गया है मंडी कोयले की
जिसमे बैठे हैं दलाल
जो बेचते हैं कोयला - चहेतों को
एक समझदार नेता कहता है
कोयला धरती माँ के अन्दर है तो फिर नुक्सान कहाँ
लेकिन जब कोयले की जगह धरती माँ को ही बेच दिया
तो क्या ये नफा हो गया
प्रधानमंत्री कहते हैं
वक्तव्य से मेरी चुप्पी ही भली
इसका अर्थ हुआ
मेरे कर्म से मेरी अकर्मण्यता ही भली
अब कोयला चूल्हे का प्रतीक नहीं
न ही प्रतीक है रोटी का
और न ही उद्योग का, प्रगति का
अब कोयला बन गया है कालिख
जो रोज पुत रही है किसी न किसी नेता के चेहरे पर
कोयला काला होता है
जिससे घर की अंगीठी सुलगती है
जिस पर माँ फुल्के बनाती है
जब बड़ा हुआ तो देखा
कोयला कारखानों में भी लगता है
बड़ी बड़ी भट्टियों में इसे जलाते हैं
लोहे को गरम करने के लिए
इस कोयले से भी चूल्हा जलता है
उन मजदूरों के घर का
जो खुद को जलाते हैं कोयले के साथ
लेकिन अब जो देखा
वो सब विचित्र है
ये कोयला अधिक काला नहीं
इससे अधिक काली है करतूतें
इस देश के कर्णधारों की
कोयला सिर्फ चूल्हा ही नहीं जलाता
कोयला सिर्फ भट्टियाँ ही नहीं सुलगाता
कोयला सुलगाता है संसद को भी
संसद बन गया है मंडी कोयले की
जिसमे बैठे हैं दलाल
जो बेचते हैं कोयला - चहेतों को
एक समझदार नेता कहता है
कोयला धरती माँ के अन्दर है तो फिर नुक्सान कहाँ
लेकिन जब कोयले की जगह धरती माँ को ही बेच दिया
तो क्या ये नफा हो गया
प्रधानमंत्री कहते हैं
वक्तव्य से मेरी चुप्पी ही भली
इसका अर्थ हुआ
मेरे कर्म से मेरी अकर्मण्यता ही भली
अब कोयला चूल्हे का प्रतीक नहीं
न ही प्रतीक है रोटी का
और न ही उद्योग का, प्रगति का
अब कोयला बन गया है कालिख
जो रोज पुत रही है किसी न किसी नेता के चेहरे पर
कोयले के कितने रूप देख लिए हैं अब ...
जवाब देंहटाएंअच्छी व्यंगात्मक रचना ...