Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 25 अगस्त 2012

मैं ढूंढता उसे था

मैं ढूंढता उसे था , हर सू  इधर उधर 
लेकिन मुझे मिला ना , ढूँढा था दर बदर

तीरथ भी सारे घूमे , मंदिर भी सारे  देखे
पर वो मुझे दिखा ना  , गायब था इस कदर

काबा में जाके ढूँढा , मस्जिद भी खूब देखी
आजान  देके देखी , वो था नहीं उधर

गुरु ग्रन्थ पढ़ के देखा , गुरु द्वार मत्था टेका
सारी  चमक दमक थी , पर वो न था उधर

गिरजे भी जाके आया , पर उसको मिल न पाया
लौकिक परंपरा थी , पर वो न था उधर

थक हार के जो मैंने , आँखों को थोडा मूंदा
आवाज एक आई , मुझे ढूंढता किधर

रहता हूँ तेरे घर पर , बैठा हूँ तेरे दर पर
मिलता हूँ तेरे अन्दर , तू भटकता दर बदर

दुखियों के दर्द में मैं , चेहरों की जर्द में मैं
उनकी मदद में मैं हूँ , जरा देख तो उधर

बूढों की लाठियों में  , बच्चों की वादियों में 
उनका सहारा हूँ मैं , जो दुखी हैं किस कदर

मस्जिद ओ  गुरूद्वारे , मंदिर ओ चर्च सारे
निर्माण हैं तुम्हारे , मैं क्यों रहूँ उधर

बाइबिल कुरआन गीता , गुरुग्रंथ हो किसी का
सब छापते तुम्ही हो , मैं क्यों पढूं मगर

तेरी आत्मा के अन्दर ,  है गूंजता मेरा स्वर
तू सुने या ना  सुने तू , मैं बोलता मगर   

मैं मार्ग मात्र देता , आदेश नहीं देता
तु  स्वतंत्र है करम में , तू चाहे वैसा कर

हैं पाप पुण्य तेरे , सब हाथ में ही तेरे
पर फल नहीं है पगले , वश में तेरे मगर 

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