Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

तुम कौन हो ?


 तुम कौन हो ?

 

तुम साधु हो या संत हो

तुम आदि हो या अंत हो

तुम देश हो परदेस हो

तुम शांत , अग्निवेश हो

 

तुम कौन हो ?

 

तुम शत्रुओं का काल हो

पापी को महाकाल हो

तुम सरल हो तुम जटिल हो

डरता है वो जो कुटिल हो

 

तुम कौन हो ?

 

भारत के तुम सरदार हो

पर इतने असरदार हो

है विश्व तुमको जानता

और गुरु तुमको मानता

 

तुम कौन हो ?

 

इंसान हो या देव हो

परमात्मा स्वयमेव हो

हिंदुत्व की पहचान हो

मानवता का सन्मान हो

 

तुम कौन हो ?

 

तुम युद्ध में क्या मुखर हो !

तुम अग्नि हो तुम प्रखर हो

पर शांति में तुम शांत हो

गंभीर तुम प्रशांत हो

 

तुम कौन हो !

 

जब देश गणना में लगा

भविष्य बुनने में लगा

चुपचाप उठ कर चल दिए

बस आत्म चिंतन के लिए

 

तुम कौन हो !

 

विष गरल पीकर मौन हो

है देश तुमसे पूछता

तुम कौन हो ?

तुम कौन हो ?

 जले भुने कुछ लोग

 

 


देश मनाता खुशियां है जब , जले भुने कुछ लोग

अपना ह्रदय जलाते हैं , कुछ गिने चुने से लोग

 

पर्व मनाते चंद्रयान के, सफल चन्द्र आरोहण का 

सर धुनते रहते हैं तब भी , धुनें धुनें कुछ लोग

 

जीवन भर कुछ कर ना पाए , बनते हैं नेता वो

करने वाले को कोसे कुछ , सुने सुने से लोग

 

देश विरोधी बातें करते  , बुद्धि के दुश्मन ये

चुन चुन कर गाली देते ये , चुने चुने कुछ लोग

 

देश बपौती मान के चलता  , एक  शाही परिवार

सर पर उन्हें चढ़ाते रहते , दरबारी कुछ लोग

विश्व की बेटी

 विश्व की बेटी

 


कल्पना कीजिये ,

आप अपने शहर से दूर किसी बियाबान में गए हों

और रास्ता भूल गए हों

जहाँ कोई वापसी का साधन नहीं हो

कोई मित्र  नहीं हो

परिवार नहीं हो

याद आती रहे जहाँ अपने बच्चों की

अपने घर की , आँगन की

 

 

चारों तरफ अँधेरा

और सन्नाटा

कोई चहचहाहट नहीं परिंदों की

कोई गुनगुनाहट नहीं झींगुर की

ना कोई जुगनू ही उड़ रहा हो जहाँ

कोई खड़खड़ाहट नहीं हो पत्तों की

कितना समय गुजार  सकते हैं आप

ऐसे एक मकान में

जो बना हो बियाबान में

कुछ घंटे , या फिर एक दिन

शायद २ - ४ दिन

और फिर कहेंगे -

हे भगवन मुझे तो मौत ही दे दे !

 

अब कल्पना कीजिये सुनीता विलियम की

जो अपने ग्रह यानि पृथ्वी से दूर

कहीं शून्य में थी करीब १२  करोड़ मील दूर

पूरे नौ महीनों तक

नितांत अंधकार

शून्य में विचरण

सन्नाटे में जीवन

जैसे एक गर्भस्थ शिशु अपनी माँ की कोख में

विचरता है

क्या  संभव है

मानवीय सहन शक्ति की और अधिक कड़ी परीक्षा

 

सुनीता तुम पराकाष्ठा हो

एक नारी की सहन शक्ति की

उसकी आस्था की

उसकी भक्ति की

जीवन को दांव पर लगाकर

विज्ञान की खोज का तुम्हारा दीवानापन

सबके अंदर पैदा कर गया एक अपनापन

सारे विश्व की तुम बेटी हो

सारा विश्व तुम्हे प्रणाम करता है

चंद्र यान ३

 चंद्र यान

-----------++------


इसरो,

क्या खूब बनाया तुमने

ये चंद्र यान

जो पहुंचा

इस धरती माँ की गोद से निकल

अढाई लाख मीलों का सफर तय कर के

अपनी ननिहाल

और सवार हो गया कंधो पर

अपने चंदा मामा के

धरती हो गयी निहाल

ना जाने क्या क्या लायेगा

ननिहाल से

कैसे कैसे उपहार

जो भला करेंगे पूरी मानवता का

हम करते बाँहें पसारे इंतेजार

वो जन्मदाता इस यान के

कुछ साधारण से लगने वाले

असाधारण भारतीय

अथक प्रयास

और लक्ष्य पर विश्वास

बस यही मूल मंत्र

था खास

और था ईश्वर पर विश्वास!

प्रणाम ऐसे वैज्ञानिकों को

जिन्होंने हमें कराया

अपनी शक्ति का आभाष!