Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

पहाड़ पर



क्यों  लोग गर्मियों में जाते पहाड़ पर
शहरों से दूर रहने ऊंचे पहाड़ पर

सड़कों की चिल्ल पों से जब फट रहे हों कान
खामोशियों की खोज में जाते पहाड़ पर

आबोहवा शहर की जब जहर घोलती
अमृत को  ढूंढने  सब जाते  पहाड़ पर

हर वक़्त दौड़ता तन पैसे की दौड़ में
फिर वक़्त अपना ढूंढने जाते पहाड़ पर

रिश्तों  के मायने जब खो जाते शहर में
रिश्तों को फिर से जीने जाते पहाड़ पर 

1 टिप्पणी:

  1. पहाड़ों में आया हुआ हूं, कुछ जाने अनजाने मायने मेरी यात्रा के इस कविता में मिले। अति सुंदर कविता।

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