Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

माँ

ठन्डे पहाड़ों के बीच
बसा  वो छोटा सा शहर
कभी कोहरा कभी बादल
कभी वर्षा हर पहर !

इस ठन्डे शहर में
थी इक बड़ी हवेली
जिसमे बसती  इक दुनिया
दुनिया से अलबेली !

ठंडा आँगन ठंडी धरती
ठंडा था आसमां
इस ठंडेपन के बीच मगर
ऊष्मा थी प्यारी माँ !

उसकी ममता की निवाच में
सब कुछ ही सबका था
उस दिल की बड़ी रजाई में
सारा घर दुबका था !

सबसे पहले उठती थी माँ
सबकी खातिर उठती
छत  पर चौके में जाने को
सीढ़ी पहले चढ़ती !

चौके में चूल्हा एक तरफ
एक तरफ बनी  क्यारी
एक तरफ बैठ तकती सबको
माँ थी कितनी प्यारी !

बाबूजी रहते शांत सदा
जीवन बिलकुल सादा
माँ उनकी सेवा में रहती
बन घर की मर्यादा !

कितने बेटे कितनी बहुएं
कितने पोती पोते
सबका रखती वो ध्यान
हमेशा जगते या सोते !

वेदों ने माना मनु जीवन
जीवन सौ वर्षों तक
उत्तम जीवन जीने वाले ही
जीते पूर्ण शतक !

इन सौ वर्षों के जीवन में
इक दुनिया बना गयी
सौ लोगों के इस घर की
यादों में समा  गयी  !

माँ , आज तुम्हारा अभिनन्दन
करते हम सब बच्चे
तुम दूर कहाँ हमसे, माँ

कहते मन से सच्चे !

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