ठन्डे पहाड़ों के
बीच
बसा 
वो छोटा सा
शहर 
कभी कोहरा
कभी बादल 
कभी वर्षा
हर पहर !
इस ठन्डे
शहर में 
थी इक
बड़ी हवेली 
जिसमे बसती  इक दुनिया
दुनिया से अलबेली
!
ठंडा आँगन
ठंडी धरती 
ठंडा था
आसमां 
इस ठंडेपन
के बीच मगर
ऊष्मा थी प्यारी
माँ !
उसकी ममता
की निवाच में
सब कुछ
ही सबका था
उस दिल
की बड़ी रजाई
में 
सारा घर
दुबका था !
सबसे पहले
उठती थी माँ
सबकी खातिर
उठती 
छत 
पर चौके में
जाने को 
सीढ़ी पहले
चढ़ती !
चौके में
चूल्हा एक तरफ
एक तरफ
बनी  क्यारी
एक तरफ
बैठ तकती सबको
माँ थी
कितनी प्यारी !
बाबूजी रहते शांत
सदा 
जीवन बिलकुल
सादा 
माँ उनकी
सेवा में रहती
बन घर
की मर्यादा !
कितने बेटे कितनी
बहुएं 
कितने पोती पोते
सबका रखती
वो ध्यान 
हमेशा जगते या
सोते !
वेदों ने माना
मनु जीवन 
जीवन सौ
वर्षों तक 
उत्तम जीवन जीने
वाले ही 
जीते पूर्ण
शतक !
इन सौ
वर्षों के जीवन
में 
इक दुनिया
बना गयी 
सौ लोगों
के इस घर
की 
यादों में समा  गयी  !
माँ , आज तुम्हारा
अभिनन्दन 
करते हम
सब बच्चे 
तुम दूर
कहाँ हमसे, माँ
कहते मन
से सच्चे !

 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें