घर घर
दीप जलायें 
अँधियारा मिट जाए।  
अंधियारे की आज
देश में 
बदल गयी
परिभाषा 
इस 
बदले युग की
हम सब से
भिन्न हुई है
आशा 
आओ हम
सब इस दिवाली
कुछ 
ऐसा कर जाएँ
!
रहे देश
का कोई बालक
शिक्षा बिन न
अधूरा 
हर बालक  जो
सपना देखे 
सपना हो
वो पूरा 
हर नन्हे
सपने को , नन्हे
पंख नए
मिल जाएँ। 
इस दिवाली  झाड़ू
लेकर 
सड़कों पर निकले
हम 
अपने शहर
मोहल्ले का सब
कचरा दूर
करें हम। 
अपने घर
की साफ़ सफाई
से आगे
बढ़ जाएँ। 
पटाखों का धूम
धड़ाका 
अब यह
नहीं सुहाता 
वायु  का
प्रदूषण करता 
कितना शोर मचाता
सीमा पर
दुश्मन से लड़ने
अपना धन
पहुँचायें।  
लक्ष्मी के पूजन
की भी अब
बदल गयी
परिपाटी 
अपनी लक्ष्मी
की कुछ राशि
यूँ समाज
में बाँटी 
धूप दीप
नेवैद्य सभी के
जीवन को
महकाए। 
दिए जलाएं
मिट्टी  के
ही 
तेल देश
का भर कर
एक दिया
अपने घर जलता
एक कुम्हार
के घर पर
त्यागे सस्ती चीनी
चीजें 
देशी ही
अपनाएं।  
मुठ्ठी मुठ्ठी दिवाली
से 
जगमग देश
सजेगा 
एक सौ
तीस कोटि लोगों
का 
जीवन जब
बदलेगा
दुनिया का सिरमौर
बने यह
 अपना
देश बनायें।

 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें