Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

शनिवार, 27 अगस्त 2011

सहस्त्राब्दी का गांधी

विश्व के इतिहास में
ये दौर क्रांतियों का है
ये दौर जागृति का है
ये दौर भ्रांतियों का है
सदियों से कुचले लोगों में
जब शक्ति कोई आ जाती है
जब सहने की ताकत
लोगों में रह न पाती है
तब कोई मसीहा बन कर के
उदघोष कहीं यह करता है
अब बहुत हो चुकी मनमानी
वह जब लोगों से कहता है
जब सच्चे लोगों की बातें
सच्चे हृदयों से आती है
वो जनता के मन के अन्दर
आवेश क्रांति का लाती है
फिर उस जादूगर के पीछे
यूँ सारा देश उमड़ता है
नभ में वर्षा के पहले ज्यों
मेघों का झुण्ड घुमड़ता है
जब अपने प्राणों की बाजी
रख कर जनता मिल जाती है
कितनी भी जिद्दीपन में हों
तब सरकारें हिल जाती है
जब कोई निस्वारथ नायक
जब अन्ना जैसा नेता हो
इस देश के बच्चे बच्चे का
तो क्यूँ न बने चहेता वो
हम आज देश के वासी सब
मिल कर इक ऐसा काम करें
इस सहस्त्राब्दी के गांधी तुम
मिलकर तुमको प्रणाम करें

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

अन्ना का स्वप्न

गाँधी को नहीं देखा
पढ़ा था कि उसने लड़ी लड़ाई
देश की आजादी की
बिना हथियार के , मेरे भाई

छोड़ गए थे अंग्रेज
जब मैदान को
टेक दिए थे घुटने
उस फकीर के आगे
हमेशा एक कथा सी लगी
ये सारा इतिहास , ये बातें

सत्याग्रह ?
ये कैसी लड़ाई
किसी और से लड़ने की जगह
खुद से लड़ाई
सताना अपने आप को
किसी बड़े कारण के लिए
आगे बढ़ कर झेलना
सब के उदहारण के लिए

देख लिया
अपने जीवन काल में
ये सब संभव है
हर हाल में

मन में सच्चाई
विचारों में दृढ़ता
परिणाम की निश्चितंता
विश्व का कल्याण
ऐसा हो नेता अगर
ऐसा हो नेतृत्व अगर

फिर कौन लडेगा
ऐसे नेतृत्व से
क्यों नहीं जुड़ेगा
पूरा देश ऐसे व्यक्ति से
जब झुक सकती थी
एक आततायी विदेशी सरकार
तो क्यों नहीं झुकेगी
एक लोकतान्त्रिक सरकार

प्रधानमंत्री ने किया कल नमन उसको
सैलूट किया था इस बूढ़े फौजी को
अपशब्द लिए थे वापस किसी ने
सर झुकाया था पूरी संसद ने

देश का स्वर्णिम दिन है आज
देश ने पहनाया अन्ना को ताज
संसद में होगा जन लोकपाल
सरकार करेगी आज फैसला
भ्रष्टाचार का डंडा
कितना मजबूत हो
ये फैसला करेगा देश आज
अन्ना का पूरा होगा स्वप्न आज




मंगलवार, 23 अगस्त 2011

देश गया भाड़ में

संसद की आड़ में
देश गया भाड़ में

भरते तिजौरियां
मंत्री जुगाड़ में

मंत्रणायें हो रही
बंद अब किवाड़ में

गर्मी की छुट्टियाँ
बीतती पहाड़ में

लेकिन अब बीत रही
सीधे तिहाड़ में

सोमवार, 22 अगस्त 2011

सरकारें ऐसी होती हैं ?

जब देश के कोने कोने में, आवाज क्रांति की आती है
मन का आक्रोश जताने को , जनता सड़कों पर आती है
जब युवक मशालें लेकर के, सब इन्कलाब चिल्लाते हैं
जब भ्रष्टाचार मिटाने को, मरने की कसमें खातें हैं
जब देश की आजादी घुट घुट, मैदानों में जा रोती है
क्या गूंगी बहरी सी बैठी , सरकारें ऐसी होती है ?

जब सीधा साधा बूढा इक, अनशन के लिए उतरता है
उसकी हर सांस की आहट में, जब भारत जीता मरता है
जो भ्रष्टाचार मिटाने को , प्राणों की बाजी रखता है
जब बच्चा बच्चा आशा से , उसके चेहरे को तकता है
सत्ता की ताकत में पागल , जो बेसुध होकर सोती है
क्या इतनी भी भटकी अंधी, सरकारें ऐसी होती हैं ?

जब मंत्री करते मौज यहाँ , जो लूट देश को खातें हैं
जब अफसर करते घोटाले , और फिर भी वो बच जाते हैं
जब आँखों पर पट्टी बांधे , प्रधान मंत्री सहता है
"जादू की छड़ी नहीं है" , जब ये लालकिले से कहता है
फिर सत्ता ऐसे लोगों की , काहे को बनी बपौती है
क्या दीन हीन लाचार बनी , सरकारें ऐसी होती है ?

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

सरकार को ग्रहण लग गया है

कल पंद्रह अगस्त था - देश की स्वतंत्रता का दिन
आज सोलह अगस्त है - स्वतंत्रता की हत्या का दिन
अंग्रेजों के राज में मुंह पर ताला था
पूरे देश पर पड़ा ग़ुलामी का जाला था
सरकार के खिलाफ बोलना राज द्रोह था
बहुत बड़ा अपराध आजादी का मोह था
लाखों ने संघर्ष किया
हजारों ने क़ुरबानी दी
इस आजादी की खातिर
युवकों ने अपनी जवानी दी

गोरे चले गए , काले आ गए
बस जैसे की घोटाले आ गए
सरकार में भर गए चोर सब
भ्रष्टाचार का आया दौर अब
जहाँ कुरेदो वहां दुर्गन्ध है
बेईमानी का झंडा बुलंद है
हर जगह अनाचार है
प्रधानमंत्री लाचार है

भ्रष्टाचार का विरोध करे जो - दुश्मन है
चाहे अन्ना ,अरविन्द, किरण या शांतिभूषण है
रामदेव को तो खदेड़ दिया था रात में
अन्ना को तो दबोचा खुली प्रभात में
सरकार अब पगला गयी है
नीतियों को झुठला गयी है
देश सारा जग गया है
इस सरकार को ग्रहण लग गया है