चीन देश के तियानानमन स्क्वयेर में फैली बदहवासी की
एक लाख से अधिक छात्र कर रहे थे विरोध प्रदर्शन
जिनमे से एक हजार कर रहे थे अनशन
बौखलाई हुई चीनी सरकार ने घेर लिया था शहर
हथियारों और टैंकों से लैश सेना ने ढाया था कहर
चारों तरफ बिछ गयी थी अढाई हजार लाशें
दुनिया देख रही थी तानाशाही चीन में हो रहे तमाशे
वो रात भी थी चार जून की
भ्रष्टाचार के खिलाफ बढ़ते जुनून की
एक योगी ने एक सरकार को दे दी चुनौती
एक लक्ष्य बन गया था - जो था एक मनौती
दो दिन के भूखे प्यासे भारतीय
थक कर लेटे थे निष्क्रिय
दिन भर था जो मन में अथाह
कुछ कर दिखाने का उत्साह
शाम को बदल गयी थी तस्वीर
मुश्किल लगती थी बदलनी तकदीर
क्योंकि खोट था सरकारी नीयत में
समझौते के नाम पर लिखवाए पत्र की बदनीयत में
एक सन्यासी को मंत्रियों ने ठगा
उसे ही ठग बताया जिन्होंने उसे ठगा
यहाँ तक तो इतिहास था धोखे का
कुटिलता से लिए गए मौके का
लेकिन उस रात जो हुआ वो अत्याचार था
प्रजातंत्र पर गहरा प्रहार था
पराकाष्ठा थी दरिंदगी की
सत्ता के गलियारों की गन्दगी की
भूखे प्यासे सोये हुए सत्याग्रही
भूखे भेड़ियों से टूटे पुलिस के दुराग्रही
चाहे थे बच्चे , नारी या नर
बरसे डंडे चाहे था सर या कमर
एक किसी ने लगा दी थी आग
मंच पर लेटे सभी लोग लिए भाग
दो घंटे चला तांडव हिंसा का
उस आन्दोलन पर जो सत्याग्रह था अहिंसा का
सरकार अपनी सफाई लाख दे ले
कभी लालच , कभी धमकी , कभी घुड़की दे ले
ये आग जो सुलग चुकी है देश में
हर प्रान्त हर मजहब के वेश में
ये जला कर कर देगी राख सब
भस्म हो जायेंगे गुस्ताख सब
चीन तो तानाशाही देश था इसलिए जो हुआ सो हुआ
भारत जैसे प्रजातंत्र में ये सब क्यों हुआ ?