हजारों की भीड़ जुटती है
भूखे नंगों और भिखारियों की
जब कोई राजनेता
बांटता है -
साड़ियाँ , टेलीविजन सेट और सौ सौ के नोट
नेता के मुखमंडल पर होता है
एक संतोष
जैसे की वो अपनी वोटों की
लहलहाती फसल को
निरख रहा हो
लेकिन यहाँ क्या बँट रहा है
इस रामलीला मैदान में
सुबह नौ बजे के अन्दर
दो लाख लोगों का जमघट
जो कि बढ़ रहा है
निरंतर
एक अथाह समुद्र सा
मानव शक्ति ले रही है
लहरों सी हिलोरें
ये भीड़ तो बढती जा रही है
और वो फकीर
गेरुए वस्त्रों में अधनंगा सा
उपदेश दे रहा है
आदेश दे रहा है
कह रहा है -
बहुत जगह है
हालांकि इस मैदान में ,
लेकिन कोई गारंटी नहीं
कि शाम को और फिर रात को
जगह मिलेगी
यहाँ आपको सोने की
कह रहा है -
अपनी शक्ति बचा कर रखो
न जाने कितने दिन चले आपका उपवास
मेरी तो तैयारी है
मृत्यु तक
ओह ! तो यहाँ बँट रही है भूख
यहाँ बँट रही है यातना
यहाँ बँट रही है मृत्यु
लाखों लोग यहाँ हैं
इस प्रसाद के लिए ?
राम लीला मैदान में
बहुत देखी हैं राम लीलाएं
लेकिन ऐसी न लीला देखी
न ऐसा राम देखा
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