Mahendra Arya

Mahendra Arya
The Poet

बुधवार, 1 जून 2011

हर हर गंगे !





हर हर गंगे , हर हर गंगे !



दुनिया का कूड़ा डाल रहे

चाहे गंगा बेहाल रहे

क्या दृष्टिकोण है बेढंगे

हर हर गंगे !



मुर्दों को इसमें बहा रहे

जिसको देखो वो नहा रहे

तन से नंगे मन से नंगे

हर हर गंगे !



पानी सर ऊपर चला गया

अमृत विष बन कर मला गया

कैसे होंगे अब सब चंगे

हर हर गंगे !

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