मैं लिखता रहता हूँ !
कोई पढ़े ना पढ़े
मैं मन के भावों को
चाहे दिखे ना दिखे
मैं अपने घावों को
अपनी कलम से खुरच खुरच कर
रिसता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
कोई समझे मेरी
बात भले बेमानी
कोई भी कीमत
उनको नहीं चुकानी
मैं अपने हाथों से अपने को ही
बिकता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
अपनी मुसीबतों से
लड़ता जाऊँगा
अपने लिखे को मैं
पढता जाऊँगा
मैं तेज हवाओं के अंधड़ में
टिकता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
कोई पढ़े ना पढ़े
मैं मन के भावों को
चाहे दिखे ना दिखे
मैं अपने घावों को
अपनी कलम से खुरच खुरच कर
रिसता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
कोई समझे मेरी
बात भले बेमानी
कोई भी कीमत
उनको नहीं चुकानी
मैं अपने हाथों से अपने को ही
बिकता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
अपनी मुसीबतों से
लड़ता जाऊँगा
अपने लिखे को मैं
पढता जाऊँगा
मैं तेज हवाओं के अंधड़ में
टिकता रहता हूँ !
मैं लिखता रहता हूँ !
बहुत ही सुन्दर कविता , आज बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग तक आई और इक सुन्दर मन को छू लेने वाली कविता पायी | हम जिन्दगी भर अपने हर दर्द का हिसाब कागजों पर लिखते रहते हैं | इसी तरह जिन्दगी अपना हिसाब हमारे चेहरे पर लिखती रहती है | जैसे जैसे हम जीते चले जाते हैं जिन्दगी हर पल इक दर्द की छाप छोड़ती जाती है | हम कागज पर लिखते है वो हमारे चेहरे पर |
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